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________________ ॥ छट्ठो उद्देसओ ॥ जम्मो वि होइ केसि, तिहुयणनेव्ववणकारणसमत्थो । उइयंमि चंदबिंबे, भण कस्स न होइ आणंदो ॥१॥ अविरयपवत्तपेच्छणयसोहियं देवलोयसारिच्छं । निच्चछणपमुइयजणं, रायगिहं अत्थि वरनयरं ॥२॥ जत्थ सरूवो सरलो विन्नाणकलावियक्खणो वसइ । महिलायणो विणीओ सुरसुंदरितुलियमाहप्पो ॥३॥ जत्थ परदारविमुहो परछिद्दपलोयणंमि जच्चंधो । परधणगहणविरत्तो गुणन्नुओ वसइ पुरिसगणो ॥४॥ अवि य- निन्नेहो जइ खलो जि तहिं जासु नेहु पीलेवि फेडिउ । खारत्तणु जइ लूणि पर तं पि तत्थु आयरहो आणिउं ॥५॥ कद्दइल्लु जइ पउमनालु तं पि जेण जलमज्झि वड्ढिउ । लंछणु जइ पर चंदि तहिं सो वि निच्चु जइ तेयझिज्जिउ ॥६॥ अवि य- डहणसीलु जइ तत्थ पर जलणु पवसणपरु जइ पर पवणु । भसइ जइ एक्क सुणहो करकरइ जइ कह व वायसु ॥७॥ अवि य- एक्को च्चिय नवर तहिं दोसो नयरंमि गुणसमिद्धमि । जं विहलिओ न दीसइ, उवयरियइ जस्स सुयणेहिं ॥८॥ खग्गग्गपहररिवुहत्थिमत्थउच्छलियबहलरुहिरोहो । जिणवयणभावियमई नरनाहो सेणिओ तत्थ ॥९॥ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002554
Book TitleJambuchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Chandanbalashree
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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