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गुरुसेन्नमिलियसहरिसखुररवसंपायदलियभूवीढो । जंबुस्स दंसणत्थं समागओ कोणियनरिंदो ||५०३ || भणिओ नराहिवेणं जंबुकुमारो अहो तए धीर ! | समइक्कंतमहापहुचरियं पयडं कयं अज्ज ॥ ५०४ ॥ उज्जालिओ इमो ते. नियवंसो दुक्करं ववसिऊण । नित्थिन्नो च्चिय एसो भवजलही वट्टए तुज्झ ॥५०५ ॥ ता सकयत्थो जम्मो पसंसणीयं च तुह कुलं अज्ज । छेत्तूण जेण मोहं पडिवन्नो उत्तमं मग्गं ॥ ५०६॥ अन्नं च- गज्जंतचारणभडा तुरंगकल्लोलसंकुला जइ वि । पडिवक्खसुहडसेणा नरेण परिजिप्पइ सुहेण ॥ ५०७ ॥ इंदियतुरंगचवला गरुयमणोरहगइंदघडकलिया । रागाइसुहडसेणा सुदुज्जया होइ लोयम्मि ॥ ५०८ ॥ कीरइ सप्पो वि वसं कोहग्गी दुज्जओ जए होइ । गुरुवारण वि जिप्पड़ माणभडो दुज्जओ एत्थ ॥५०९ ॥
विसगंठीविसरहिया कीरइ माया य दुज्जया सप्पी । वित्थिन्नो मयरहसे लंघिज्जड़ नूण ( न उण ) लोहदहो ॥५१० ॥ एयं पुण ते सव्वं विणिज्जियं दुज्जयं पि गुरुकम्मं । अक्खयसोक्खावासो उवज्जिओ नूण ते धीर ! ॥ ५११ ॥
तुहिं चिय एसो मणहरलायण्णरूवचरियेहिं । भुयणाभोओ सोहइ हेलाजियमयरचिधेहिं ॥५१२॥ जइ गरुयसत्तचरिया न हुंति तुम्हारिसा महापुरिसा । धम्मधुरा जिणभणिया ता खुप्पइ मोहपंकंमि ॥५१३॥ एवं महानरीसरनरिंदसामंतसेद्विपमुहेहिं । अणुमंतो जंबू गओ पसंसिज्जमाणो य ॥५१४ ॥
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जंबुचम्
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