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पंचमो उद्देस
विज्जुलयाओ खणमेत्तउव्वओ (?) दिट्ठनट्ठरायाओ । न तहा थिरं पयासं, जणंति जह चेव उव्वेवं ॥११॥ सिहुलाकेयाररवो, नवघणसञ्छन्नए गयणमग्गे । सुव्वन्तो संतावइ, पउत्थवइयाण हिययाई ॥१२॥ पहियाण बरहिणरवो, पियाइ सह जंपियाइ सारेइ । विहडियसंकेयदिणा, जाया हिययं डहन्तीओ ||१३|| अवमन्नियतणतण्हं, निब्भरसीएण वेविरसरीरं । वंछइ वासापहयं, निलयं कहकह वि मयजूहं ॥१४॥ गिम्हायवसंतत्तं, कहवि हु संपाविऊण नवजलयं । निच्चमवमन्नियछुहं, सेवइ नीरं महिसवंद्रं ॥ १५॥ छज्जंति धरा घेप्पंति इंधणा अंकुरा वि लूहंति । पयरिज्जंति य सासा, घणसमए अह कुटुंबीहिं ॥ १६ ॥ इय घणसमए जणमणहरम्मि मेहाउलम्मि वोली । वियसंतकमलसंडो, संपत्तो तक्खणं सरओ ॥ १७॥ उप्फुल्लकुवलयच्छी, वियसियसयवत्तपहसिरी सहइ । दट्ठूण सरयदइयं, पुहइवहू गरुयराएण ॥१८॥ पंडुरपओहराओ, वियसियसियकासकुसुमवत्थाओ । घणसमयदइयविरहे, जायाओ दिसाओ तणुयाओ ॥१९॥ सियकासकुसुमदसणुच्छलन्तकिरणाए सरयलच्छीए । सरयागमे पहसियं, तह जह जायं नहं विमलं ॥२०॥ इय एरिसम्मि सरए, पियपणइणिवंद्रपरिगओ ललइ । सायरदत्तो पवरम्मि मंदिरे अह समारूढो ॥ २१ ॥ नाणाविहकीलाहिं, तस्स ललन्तस्स उवरिमतलम्मि । सरए जायं सहसा, दसद्धवन्नं जलयवंद्रं ॥२२॥
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