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________________ जंबुचरियम् ता एवं नाऊणं गुरुणो पासम्मि विगहरहिएहिं । उवएसो घेत्तव्वो असेसदुक्खक्खयनिमित्तं ॥१७।। भणियं च- "निद्दाविगहापरिवज्जिएहिं गुत्तेहिं पंजलिउडेहिं । भत्तिबहुमाणपुव्वं, उवउत्तेहिं मुणेयव्वं" ॥१८॥ [ पञ्चव./गा.१००६ ] अभिकंखंतेहिं सुहासियाई वयणाई अत्थसाराई । विम्हियमुहेहिं हरिसागएहिं हरिसं जणंतेहिं ॥१९॥ गुरुपरिओसगएणं गुरुभत्तीए तहेव विणएणं । इच्छियसुत्तत्थाणं, खिप्पं पारं समुवएंति ॥२०॥ सो वि गुरू सुविसुद्धो धम्माधम्मेसु गहियपरमत्थो । जिणवयणामयकुसलो नायव्वो होइ निउणेहिं ॥२१॥ भणियं च- "गुणसुट्टियस्स वयणं महुघयसित्तो व्व पाप( य )सो भाइ । गुणहीणस्स न सोहइ नेहविहूणो जह पईवो" ॥२२॥ [ ] तेण य सुहासुहाई गम्मागम्माइं जाणिउं तरइ । वच्चावच्चाई चिय पेयापेयाई अबुहो वि ॥२३॥ तेहिं चिय नाएहि परिहरियव्वाइं परिहरइ पुरिसो । गिण्हइ गहियव्वाइं उवेक्खणीए उवेक्खेइ ॥२४॥ परिसा य होइ तिविहा अयाणिया तह य जाणिया बीया । तइया य दुव्वियड्ढा अहवा पन्नाइया बहुहा ॥२५॥ संविग्गा य कयन्नू थिरा य गुणगाहिणी य तह परिसा । कज्जाकज्जविवेयणसमाउला होइ धन्ना उ ॥२६॥ ता एसा एयगुणोववेइया जेण जिणमयपवन्ना । एत्थ य होइ पयासो सहलो गुरुणो भणंतस्स ॥२७॥ गुणपालणखंतिपरा य नरा, निसुणंति इमं विगहारहिया । तवसंजमनाणससीसुरया, अह हुंति य ते अपवग्गगया ॥२८॥ इय जंबुणामचरिए, पयवन्नपसत्थविविहनिम्मविए । नामेण कहनिबंधो, बीओद्देसो समत्तो त्ति ॥२९॥ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002554
Book TitleJambuchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Chandanbalashree
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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