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जंबुचरियम् वेयणापरिस्संतो चइऊण घरनिवासं तस्सेव भगवओ समीवे गहिऊण दुद्धरवयं चरिऊण य घोरतवच्चरणं, अणसणविहिणा कालमासे कालं काऊण देवलोगं गओ त्ति ॥छ।। ____ ता पभव ! एवंविहे संसारविलसिए मा मूढपरंपरसमागयासु लोइयकुसुईस परोप्परं विरुद्धासु पुव्वावरविबाहियासु परमत्थबुद्धीए गहणं कुणसु' त्ति ॥छ।। अवि य- अन्नाणंधो लोओ धमं गिण्हइ अहंमबुद्धीए ।
जं पुण एत्थाहंमं तं गिण्हइ धंमबुद्धीए ॥११२॥ सव्वो च्चिय एत्थ जणो धम्मं किर कुणइ निययबुद्धीए । तस्स य जं परमत्थं तं मूढो न उण जाणेइ ॥११३॥ रागद्दोसपरत्तो नियनियकुग्गाहभाविओ वत्थु ।
कुमईसु मोहियमणो विवरीओ सव्वहा लोओ ॥११४॥ ता सव्वहा अणाएओ इमो पक्खो । जओ
छत्ताइसंठिओ वि हु तण्हाभुक्खाभिभूयहिययो वि । निययघरे वि सुएणं दिन्नं पि न पावए जणओ ॥११५॥ चोद्दसरज्जुपमाणे चउरासीजोणिलक्खगहणंमि । संसरमाणो किं पुण पावउ संसारकंतारे ॥११६॥ जइ सुरवरेसु जाओ महइमहंतेसु रिद्धिपुन्नेसु । ता किं सो पिंडेणं काही असुईसमाणेण ॥११७॥ अह नरए निच्चं चिय दुक्खमहाघोरसंकुले जाओ। ता कत्थ तस्स पिंडो पावउ अहवा वि सो लहउ ॥११८॥ ता सव्वहा वि जाणसु न होइ एसो सुसंगओ पक्खो । मूढजणसत्थविरड्यपरंपरसमागओ नूणं ॥११९॥ अह भणसि तह वि एसो आएओ तह वि बहुमओ पक्खो । बहु-बहुमयपक्खाणं को पक्खो तेसि गहणिज्जो ॥१२०॥ मन्नंति के वि जीवं के वि य संसन्ति पंचभूयमयं । साम( सम ? )तंदुलसारिच्छं धडविडसरिसोवमं के वि ॥१२१॥ अंगुट्ठपव्वरेहाए के वि मन्नंति नूण सारिच्छं । एमाई पक्खाणं को परखो सेसि रमणिज्जो UPPPM
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