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अम उद्देओ
जड़ घडविडयसमाणो तंदुलरेहाए अह समो होज्जा । ता कीस एस वावी हवइ य सयलस्स देहस्स ॥ १२३ ॥ केसनहाइअचेयणठाणं मोत्तूण सेस तणुवावी । [ जीवो ] जिणपन्नत्तो होइ न रेहाइओ तम्हा ॥ १२४॥ पुढविजलानलमारुयआयासविणिमिओ वि नो जम्हा । भावे वि जेण तेसिं देहस्स अचेयणत्त त्ति ॥ १२५ ॥ अह भणसि तत्थ वाऊविनिग्गओ तेण हो अचेयन्नं । सोनू तत्थ विज्जइ लोयव्वावी य सो जम्हा ॥ १२६॥ अह भणसि को वि सुहमो विणिग्गओ तेण तं अचेयन्नं । अम्हेहिं सो वि जीवो भणिओ सव्वन्नुदिट्ठीए ॥१२७॥ तम्हा उ एस सिद्धो परभवगामी य दुक्खसुहभाई । जीवो अणाइनिहणो दिट्ठो सव्वन्नुणा नूणं ॥ १२८ ॥ भणियं च एत्थ जम्हागमभंगपसत्थसत्थनिउणेहिं । सव्वन्नुवयणवित्थरपयाणुसारीहिं साहूहिं ॥ १२९ ॥ सिद्धं जीवस्स अत्थित्तं सद्दादेवाणुमइ । भावइ ( ? ) सरभूइभावस्स सद्दो हवइ केवलो ॥१३०॥ जो चिंतेइ सरीरे नत्थि अहं स इव होइ जीवो ति । नहि जीवंमि असत्ते संसयउप्पायओ अन्नो ॥१३१॥ जीवस्स एस धंमो जा ईहा अत्थि नत्थि वा जीवो । थाणुमणुस्साणुगया जह ईहा देवदत्तस्स ॥१३२॥ जायंते केवि नूणं विमलगुणगणे पालिऊणं सुधीरा, जेसिं सव्वं पि एवं परभवजणियं दिव्वसोक्खं विसालं । संपत्तं तं चएउं विगयरयमला भोक्खसोक्खेक्कचिंता, मोहं हंतूण सिग्घं जिणवरवयणे हुंति ते सुठु लीणा ॥१३३॥ इय जंबुनामचरिए उद्देसो पहवउत्तरभिहाणो । एसो होइ समत्तो एत्तो य परं पवक्खामि ॥१३४॥
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