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________________ पंचमो उद्देसो तुह विरहानलतविया, जइ इह [ते] सफरिय व्व सुसिऊण । न मरइ जणणि रुयंती, ता कुण एवं अविग्घेण ॥१६॥ तओ तेण अवलोइयं जणणीए मुहकमलं । तीए भणियं सगग्गयक्खरं । अवि य तुह विरहासणिजालोलिजलियदेहस्स वच्छ ! कह कहवि । पु(फु)ट्टइ न तक्खणं जइ, हिययं तुह चेव जणयस्स ॥९७।। तओ भणिए सायरदत्तेण जणणि-जणए । अवि य न मरइ कोइ विओए, न य कस्स वि फुट्टए फुडं हिययं । जइ पुण एवं होतं, न को वि लोए जणो हुँतो ॥९८॥ सव्वेहिं सह विओओ, सव्वे वि मरंति जंतुओ णिययं । न य कस्स वि अणुमरणं, दीसइ अह एत्थ लोयम्मि ॥१९॥ अन्नं च- जायंति ते वि सत्तू, हवंति ते चेव बंधवा जंतू । कस्स कए अणुमरणं, कीरइ इह बुद्धिमंतेहिं ॥१००॥ एवं बहुप्पयारं, भणिए कहकह वि तेहिं सो मुक्को । पवयणविहिणा सह पणइणीहिं पव्वाविओ गुरुणा ॥१०१।। गहियकिरियाकलावो, पत्तो य सुओयहिस्स सो पारं । सुविसुद्धचरणकरणो, जाओ अह ओहिनाणी य ॥१०२॥ ठविओ य पुणो गुरुणा, पयम्मि निययम्मि सो महासत्तो । विहरइ गणपरियरिओ, बोहेंतो भवियकुमुयाई ॥१०३।। इओ य सो भवदेवसाहुजीवदेवो भुंजिऊण सोहम्मे कप्पे नियमाउयं ठिइक्खएण चुओ समाणो तत्थेव पुक्खलावइविजए अत्थि वीयसोया नाम महानयरी, जा य सा केरिसा ?, अवि य अच्चुन्नयाई जत्थ जिणभवणाई न उण गुरुपणामाई । दीहरवच्चई पेमई न चेव परिसंगइ खलेहिं ॥१०४॥ कुटिलाई केसटमराई जत्थ जुवईण न उण चरियाई । पीइपसाओ य थिरो, न माणबंधो जहिं अत्थि ॥१०५।। Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002554
Book TitleJambuchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Chandanbalashree
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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