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________________ सोलसमो उद्देसओ तह जो जिणिदवयणे मिच्छत्तमहंधयाररविकप्पे | लूओं व मन्नइतमं न कुणइ सद्धा तहिं मूढो ॥ ५६५॥ इय सद्धा जिणवयणे दुलहं चिय होइ कम्मरुयाणं । केसि पि जओ जायइ कम्मोवसमेण जीवाणं ॥५६६ ॥ सद्भाकलिओ वि जई संजमजोगं न पावई जीवो । घरपुत्तदारसत्तो निरुज्जमो चरणकरणेसु ॥ ५६७॥ गुरुकम्मवसा जीवा जिणमयदिट्ठीए जाणमाणावि । न य विरमंति अउन्ना पावाओ कुगइमूलाओ ॥५६८ ॥ जह को वि जाणमाणो विसगंठिगुणं तहावि मूढमई । असइपमायवसेणं सो पावइ तस्स विणिवायं ॥५६९॥ तह जो पमायजुत्तो जिणवयणं जाणमाणओ वि नरो । न कुणइ संजमजोगं कुणइ य असमंजसं पावं ॥ ५७० ॥ सो मूढमई पावइ अणोरपारंमि भवसमुद्दमि । विरईरयणविहीणो दुखाइं अनंतकालं पि ॥ ५७१ ॥ जह तक वि याणइ मूलं मरणस्स चोरिया होई । पेच्छइ मारिज्जंते अन्ने जे चोरियासत्ते ॥५७२॥ तह वि न विरमइ पावो एवं जीवो वि जाणमाणो वि । पावस्स फलं मूढो न य गिण्हड़ संजमं तह वि ॥ ५७३ ॥ भणियं च - "जह सयलजलियकाणणवणतणडज्झतभीसणं जलणं । ण जाणइ नरो डज्झिज्जइ न य पलाएइ" ॥५७४॥ [ ] तह सत्तुमित्तघरवासजलणजालावलीविलुद्धो वि । जाणइ डज्झामि अहं न य नासइ संजमं तेण ॥ ५७५ ॥ [ ] अज्जं कल्लं परं परं ( कल्लपरारं) विरमामो जा मिमं निवत्तेमि । एवं चिंततो च्चिय ता जा निहणं पि पावेइ ॥५७६॥ अन्ने वि किल विरत्ता संजमपडिकूलसेविणो पावा । तं तं करिंति मूढा जं जं चिय नरयगइमूलं ॥५७७॥ Jain Education International 2010_02 २३७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002554
Book TitleJambuchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Chandanbalashree
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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