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जंबुचरियम्
तंबोलकुसुमकुंकुंमसन्निहियविडंगदीहनेत्ताओ। जत्थ य पयडनहाओ विवणीओ वेसिणीउ व्व॥१०॥ तत्थ य राया दरियारिमत्तमायंगकुंभनिद्द[ल]णो । सीहो इव पच्चक्खो नामेणं सेणिओ अत्थि ॥११॥ घणथणनियंबपिहला मंथरगइसरलकोमलसरीरा । अवरोहणप्पहाणा अह देवी चेल्लणा तस्स ॥१२॥ तीए संमं पंचविहे भोए सग्गे व्व देवरायस्स । भुंजंतस्स सुहेणं वच्चइ कालो नरिंदस्स ॥१३॥ अहमन्नया कयाई केवलवरनाणदंसणपईवो । सुरमणुयासुरमहिओ भयवं वीरो समोसरिओ ॥१४॥ देवेहिं तओ रइयं चेइयदुमछत्तचामरसणाहं । धयतोरणसीहासपायारजुयं समोसरणं ॥१५।। नमिऊण तओ तित्थं काऊण पयाहिणं सुहनिसन्नो ।
पुव्वाभिमुहो भयवं धम्म कहिउं अह पवत्तो ॥१६॥ कह - "नारयतिरियनरामरगईसु परिभमइ कम्मसंतत्तो।
जीवो धम्मविहीणो पुणो पुणो भवसमुद्दम्मि ॥१७॥ मिच्छत्तमोहियमणो निंदियअहमाइं पावकम्माइं । काऊण नरयकूवे पडइ य जीवो तमंधम्मि ॥१८॥ तत्थ य छिंदणभिंदणफाडणउक्कत्तणाई बहुयाइं । पावेइ णेगकालं दुक्खाइं पावजणियाई ॥१९॥ वहणंकणनत्थणताडणाई तिरियत्तणे वि पावेइ । मणुयत्तणे वि पत्ते, दुक्खाइं अणेगरूवाइं ॥२०॥ देवत्तणे वि जाए किविसिओ होइ मंदरिद्धिल्लो । रिद्धि पत्तो वि पुणो, चवणाईयं लहइ दुक्खं ॥२१॥
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