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___ जंबुचरियम् अइमायाहारविवज्जणा य अह अट्ठमा इमा भणिया । नवमा य जं विहूसा, न कीरए निच्चकालं पि ॥१९६॥ एवं होइ चरितं, गुत्तीओ तस्स रक्खणवईओ । भणियाओ अह इमाओ, एत्तो नाणाइयं वोच्छं ॥१९७॥ नाणं पंचपयारं, पन्नत्तं जिणवरेहिँ सव्वेहिं । मइ-सुय-ओही-मणपज्जवं च तह केवलं होइ ॥१९८॥ उग्गह ईह अवाओ, य धारणा होइ एत्थ मइनाणं । सुयनाणं अंगाई, जिणपन्नत्तं मुणेयव्वं ॥१९९॥ खयउवसमियं भवपच्चयं च अह होइ ओहिनाणं तु । जणमणचिंतियमुणणं, नाणं मणपज्जवं होई ॥२००॥ जं सव्वदव्वपरिणामभावविन्नत्तिकारणं परमं । तं सासयं अबाहं, केवलनाणं जिणाभिहियं ॥२०१॥ नाणं वत्थुअवगमो, दिट्ठीए जहपवत्तदव्वाणं । अवबोहो इह हियए, जायइ केसिं चि वत्थूणं ॥२०२॥ नाणुवलद्धपयत्थाण होइ वत्था( तत्ता)ण जा रुई परमा । तं दसणं ति भणियं, सम्मत्तं तस्स पज्जाओ ॥२०३॥ चारित्तमणवाणं, विहि-पडिसेहो य तं जिणक्खाओ । पंचपयारं तं पि हु, साहिप्पंतं निसामेह ॥२०४॥ सामाइछेउवट्ठावणं च परिहारसुद्धियं तइयं । तह सुहुमसंपरायं, अहखायं पंचमं चरणं ॥२०५॥ होइ तवो वि य दुविहो, बाहिर अभितरो जिणक्खाओ ।
अणसणमाई पढमो, प्रच्छित्ताई भवे बीओ ॥२०६॥ सो य-अणसणमूणोयरिया, वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ।
कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ॥२०७॥
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