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________________ १२ ऐसा वाक्यप्रयोग किया है जो उद्योतनसूरि के वाक्य प्रयोग के साथ सर्वथा तादात्म्य रखता है । क्या इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि उद्योतन सूरि के सिद्धान्तगुरु वीरभद्राचार्य और गुणपाल मुनि के प्रगुरु वीरभद्रसूरि दोनों एक ही व्यक्ति हों । यदि ऐसा हो तो 'जंबुचरियं' के कर्ता गुणपाल मुनि का अस्तित्व विक्रम की ९वीं शताब्दी के अन्त में माना जा सकता है । और इस सम्बन्ध से कुवलयमाला कहा का सविशेष परिचय गुणपाल मुनि को होने से उनकी इस रचनाशैली में उक्त कथा का विशेष अनुकरण स्वाभाविक हो सकता है । पर यह विचार कुछ विशेष अनुसन्धान की अपेक्षा रखता है जिसके लिए हमें अभी वैसा अवसर प्राप्त नहीं है । ऊपर हमने इन गुणपाल मुनि को नाइलगच्छीय लिखा है और यह गच्छ बहुत प्राचीन गच्छो से है जिसके उल्लेख पुरातन स्थविरावलियों में मिलते हैं । यद्यपि गुणपाल ने प्रस्तुत चरियं में अपने गच्छ का निर्देश नहीं किया है पर इनकी एक दूसरी रचना हमें प्राप्त हुई है जिसमें इसका उल्लेख किया गया है । चरियं की तरह वह भी प्राकृतभाषा का एक सुन्दर कथाग्रन्थ है | पूना के 'भांडारकर प्राच्यविद्या संशोधनमन्दिर' संस्थित राजकीय ग्रन्थ संग्रह में 'रिसिदत्ताचरियं' की ताडपत्रीय पोथी सुरक्षित है जो पाटण या जेसलमेर के किसी जैन भण्डार में से प्राप्त हुई होनी चाहिए। इस कथा की एक त्रुटित पोथी जेसलमेर में भी हमारे देखन में आई । पूना में सुरक्षित ताडपत्रीय पुस्तक पर से 'रिसिदत्ताचरियं' का आद्यतन्त भाग हमने नकल कर लिया था जिसको यहाँ उद्धृत कर देना उपयुक्त होगा । पूनावाली पोथी के कुल मिलाकर १५६-५७ ताडपत्र हैं जिनमें से पिछले ३ पत्र त्रुटित दशा मैं, अतः उनका अन्तिम भाग खण्डित रूप में मिलता है । ग्रन्थ का प्रारम्भ इस प्रकार है। नमिऊण चलणजुयलं पढमजिणिदस्स भुवननाहस्स । अवसप्पिणी धम्मो पयासिओ जेण इह पढमं ॥ बालत्तणंमि जेणं सुमेरुसिहरे भिसेयकालंमि । वामलचलणंगुलीए लीलाए डोलिया पुई ॥ तं वरकमलदलच्छं जिणचंदं मत्तपीलुगइगमणं । नमिऊण महावीरं सुरंगणसयसंथुयं वीरं ॥ सेसे वय वावीसे नमिऊणं नद्वरागमयमोहे | सुरमयासुरमहिए जीवाइपयत्थओब्भासे ॥ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002554
Book TitleJambuchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Chandanbalashree
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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