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सोलसमो उद्देसओ
इय पुन्नापुन्नफलं पच्चक्खं चेव दीसए लोए । एत्तो य तव विसेसो लक्खिज्जइ आगमबलेण ॥९५॥ "एक्के दोघट्टघडानि[व]हा जंपाणजाणतुरएहि । वच्चंति सुकयपुन्ना अन्ने अणुवाहणा पुरओ ॥१६॥[ ] एक्के चंदणमयनाहिघुसिणकप्पूरपरिमला निच्चं । अन्ने लायंजणर्टिकयं पि मन्नंति छणभूयं ॥९७॥ [ ] एक्काण वित्थरिज्जइ सिप्पीकच्चोलथालसंघाओ । अन्नाण कह वि दुक्खेण पत्तपुडिया वि संपडइ ॥९८॥[ ] एक्काण पाणभोयणवंजणसंजुत्तविविहमाहारं । अन्नाण नेहरहियं दिज्जइ वरदडवल्लरयं ॥९९॥ [ ] एक्के पटुंसुयविविहवत्थदेवंगसुकयनेवच्छा । अन्ने विसिन्नसाडियजरडंडीखंडपाउरणा ॥१००॥ [ ] एक्काण निसा निज्जइ मणिदीवसणाहचारुसयणेहिं । अन्नाण भूमिकोणे धूलीतणफँसलियंगाण ॥१०१॥ [ ] बोहिज्जति पहाए थुइमंगलवयणगीयसज्जे( हे )हिं । अन्ने साहिक्खेवं खरनिटुरदुटुवयणेहि" ॥१०२॥ [ ] इय पुन्नापुन्नफलं विविहं नाऊण कम्मवसयाण ।
तह प्प[व]त्तह काउं जह मुंचह सव्वदुक्खाणं ॥१०३।। अन्नं च- "जरमरणरोगउरं संसारे विसयतण्हनडियाओ।
मा पावह मुद्धाओ दुक्खाई अणोरपाराई" ॥१०४॥ [ ] ता- "अमयं व गिण्हह इमं जिणवयणं अहव कप्परुक्खं वा ।
चिंतामणि व्व अहवा सव्वेसिं आयरतरेण" ॥१०५॥ [ ] जओ- "रयणारे व्व नदु(टुं) दुलहं रयणं व होइ मणुयत्तं ।
जोणिबहुलक्खकिन्ने संसारे णोरपारंमि" ॥१०६॥ [ ] ता एयं नाऊणं गिण्हइ भावेण जिणमयं धम्मं । पावेह जेण अइरा सिवमयलमणंतकल्लाणं ॥१०७॥
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