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अंकोंके द्वारा गिन ही सकते हैं । यह राशि तो अवधिज्ञानकाही विषय है । अनन्तराशि अनन्तप्रमाणवाले केवलज्ञानका विषय है, उसे सर्वज्ञके सिवाय और कोई नहीं जान सकता ।
छक्खंडागम
इनमें से संख्या के तीन भेद हैं- जधन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । यद्यपि गणनाका आदि एकसे माना जाता है, तथापि वह केवल द्रव्यके अस्तित्वकाही बोधक है, भेदका सूचक नहीं 1 भेदकी सूचना दो से प्रारम्भ होती है, अतएव दो को संख्यातका आदि माना गया है । क्योंकि एक एकका भाग देनेसे अथवा एकको एकका गुणा करनेसे संख्यामें कुछ भी हानि या वृद्धि नहीं होती है । इस प्रकार जघन्य संख्यांत दो है । आगे बतलाये जानेवाले जघन्य परीता संख्यातमें से एक कम करनेपर उत्कृष्ट संख्यातका प्रमाण आता है । जघन्य और उत्कृष्टके मध्य में जितनी भी संख्याएं पाई जाती हैं, उन्हें मध्यम संख्यात जानना चाहिए |
असंख्यातके तीन भेद हैं- परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और असंख्यातासंख्यात । ये तीनोंही जघन्य, मध्यम और उत्कृष्टके भेदसे तीन-तीन प्रकार के हैं । जघन्य, परीतासंख्यातका प्रमाण जानने के लिए अनवस्था, शलाका, प्रतिशलाका और महाशलाका नामवाले चार महाकुडोंको बनाकर और उनमें सरसों भरकर निकालने और पुनः भरने आदि का जैसा विधान त्रिलोकसारमें गा. १४ से ३५ तक बतलाया गया, उसे देखना चाहिए । आगे बतलाये जानेवाले जघन्य युक्तासंख्यातमेंसे एक अंक कम करनेपर उत्कृष्ट परीतासंख्यातका प्रमाण प्राप्त होता हैं । जघन्य और उत्कृष्ट परीता संख्यातकी मध्यवर्ती सर्व संख्याको मध्यम परीतासंख्यात जानना चाहिए ।
जघन्य परीतासंख्यातके वर्गित-संवर्गित करनेसे अर्थात् उस राशिको उतने ही वार गुणित - प्रगुणित करनेसे जघन्य युक्तासंख्यातका प्रमाण प्राप्त होता है । आगे बतलाये जानेवाले जघन्य असंख्यातासंख्यातमेंसे एक अंक कम करनेपर उत्कृष्ट युक्तासंख्यातका प्रमाण प्राप्त होता है । इन दोनोंके मध्यवर्ती सर्व संख्याको मध्यम युक्तासंख्यात जानना चाहिए । जघन्य युक्त संख्यातका वर्ग करनेपर जघन्य असंख्याता संख्यातका प्रमाण आता है । तथा आगे बतलाये जानेवाले जघन्य परीतानन्तमेंसे एक अंक कम करनेपर उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात का प्रमाण आता है । इन दोनोंकी मध्यवर्ती संख्याको मध्यम असंख्यातासंख्यात जानना चाहिए ।
जघन्य असंख्याता संख्यातको तीन वार वर्गित संत्रर्गित करनेपर जो राशि उत्पन्न होती है, उसमें धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, एक जीव और लोकाकाश इन चारोंके प्रदेश, तथा अप्रतिष्ठित और सप्रतिष्ठित वनस्पतिके प्रमाणको मिलाकर उत्पन्न हुई राशिको पुनः तीन वार वर्गित संवर्गित करना चाहिए । इस प्रकार से प्राप्त हुई राशिमें कल्पकालके समय, स्थिति बन्धाध्यवसाय स्थानोंका और अनुभाग बन्धाध्यवसायस्थानोंका प्रमाण तथा योगके उत्कृष्ट अविभागप्रतिच्छेदों का प्रमाण मिलाकर उसे पुनः तीन वार वर्गित संवर्गित करनेपर जो राशि उत्पन्न होती है, वह जघन्य परीतानन्त कही
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