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चार्वाकदर्शनम्
मिति परस्पराश्रयवज्रप्रहारदोषो वज्रलेपायते । तस्मादविनाभावस्य दुर्बोधतया नानुमानाद्यवकाशः ॥
विधि ( Affirmative ) का निश्चय हो जाने के बाद ही उसके निषेध ( Negative ) का निश्चय होता है, इसलिए उपाधिज्ञान ( विधि ) हो जाने पर हो इसके निषेध ( अभाव ) से युक्त सम्बन्धवाली व्याप्ति का ज्ञान होता है ( व्याप्ति में उपाधि का अभाव होना चाहिए इसलिए उपाधि का ज्ञान हो जाने के बाद ही व्याप्ति का ज्ञान संभव है ) । दूसरी ओर उपाधि का ज्ञान भी व्याप्तिज्ञान पर निर्भर करता है (क्योंकि उपाधि के लक्षण में ही व्याप्ति की बात आती है— साधनाव्यापकत्वे सति साध्यसमव्यापकः आधि: ) । इस प्रकार अन्योन्याश्रय-दोष-रूपी वज्र प्रहार [ विरोधियों के मुख पर ] वज्रलेप ( सिमेंट के पलस्तर ) के समान दृढ़ हो जाता है । इस प्रकार अविनाभाव ( व्याप्ति Universal Proposition ) दुर्बोध है और अनुमानादि प्रमाणों का कोई स्थान नहीं ।
( १३. लौकिक-व्यवहार और वस्तुएँ )
धूमादिज्ञानानन्तरमग्न्यादिज्ञाने प्रवृत्तिः प्रत्यक्षमूलतया भ्रान्त्या वा युज्यते । क्वचित्फलप्रतिलम्भस्तु मणिमन्त्रौषधादिवद् यादृच्छिकः । अतस्तत्साध्यमदृष्टादिकमपि नास्ति । नन्वदृष्टानिष्टौ जगद्वैचित्र्यमाकस्मिकं स्यादिति चेत् — न तद्भद्रम् । स्वभावादेव तदुपपत्तेः । तदुक्तम्११. अग्निरुष्णो जलं शीतं समस्पर्शस्तथानिलः ।
केनेदं चित्रितं तस्मात्स्वभावात्तद्व्यवस्थितिः ॥ इति ।
धूमादि जानने के बाद अग्न्यादि जानने की जो प्रवृत्ति [ लोगों में देखी जाती ] है वह या तो पूर्वकाल के प्रत्यक्ष पर आधारित है ( = पहले अग्नि को प्रत्यक्ष रूप से देखा था, कुछ देर के बाद धुएँ को देखनेसे संस्कार जग गया और मनुष्य अग्नि को याद करते हुए प्रवृत्त होता है ), या यह बिल्कुल भ्रम है ( = धूम-अग्नि के साहचर्य से को धूम देखकर अग्नि का भ्रम होता है ) । कभी-कभी इससे फल की प्राप्ति हो जाती है, वह तो मणि, मन्त्र, औषध आदि के समान स्वाभाविक है ( अर्थात् मणिस्पर्श, मन्त्र- प्रयोग और औषध सेवन से कभी कार्य होता है, कभी नहीं । कभी-कभी तो इनके बिना भी कार्य की सिद्धि हो जाती है ।) इसलिए अन्वयव्यतिरेक की विधियों में ठहर न सकने ( व्यभिचरित होने) के कारण इनमें कार्य-कारण- भाव ( Causal relation ) नहीं है । ऐश्वर्यादि की प्राप्ति मणिस्पर्श से नहीं, स्वभावतः ही होती है। रोगादि निवृत्ति भी कभी स्वभावतः, कभी किसी विशेष अन्न के खाने से होती है इसमें औषधसेवन का क्या प्रयोजन है । फिर भी काकतालीय न्याय ( Accidental coincidence ) से होने वाले कार्य को
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