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प्रहापनास्त्रे अभीक्ष्णं निःश्वसन्ति, तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-मनुष्याः सर्वे नो समाहाःो यथा नैरयिकाणाम्, नवरं क्रियाभिर्मनुष्यास्त्रिविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-सम्यग्रदृष्टयः, मिथ्यादृष्टयः, सम्यगमिथ्याप्टयः, तत्र खलु ये ते सम्यग्दृष्टयस्ते त्रिविधाः प्रज्ञप्ताः, दद्यथासंयताः, असंयताः, संयतासंयताः, तत्र खलु ये ते संयतास्ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथासरागसंयताः, वीतरागसंयताश्च, तत्र खलु ये ते वीतरागसंयतास्ते खलु अक्रियाः तत्र खलु ये आहार करते हैं (जाव अप्पतराए पोग्गले नीससंति) यावत् अल्पतर पुद्गगलों का निश्वास लेते हैं (अभिक्खणं आहारे ति) बार-शार आहार करते हैं (जाव अभिवणं नीससंति) यावत् बार-बार नि:श्वास लेते हैं (से तेणटेणं गोयमा। एवं बुच्चइ) इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि (मणुस्सा सव्वे णो समाहार) सत्र मनुष्य समान आहारवाले नहीं हैं (सेसं जहा नेरइयाणं) शेष जैसे नारको का कथन (नधरं किरियाहिं मला तिविहा पण्णत्ता) विशेष यह है कि क्रियाओं की अपेक्षा मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (समद्दिट्ठी) समग्दृष्टि (मिच्छादिही) नियादृष्टि (सम्मामिच्छद्दिठो) सम्पमिथ्यादृष्टि।
(तत्थ णं जेते सम्मठ्ठिी) उनमें जो सम्यग्दृष्टि हैं (ते तिविहा पण्णत्ता) वे तीन प्रकार के हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (संयता, असंयता, संयतासंयता) संयमी, असंयमी और संयमासंयमी (तत्थ णं जे ते संयता) उनमें जो संयमी हैं (ते दविहा पण्णत्ता) वे दो प्रकार के हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (सरागसंजता) सरागसंयमी (बीयरागसंजता य) और वीतरागसंयमी (तत्थ णं जे ते वीतरागअप्पसरीरा) तमामा रे २८५ शरीरवा छे (तेणं अपतराए पोग्गले आहारे ति) तमे। १८५२ पुगताना मा.२ ४२ छे (जाव अप्पतराए पोग्गले नीससंति) यावत् २५६५तर पुससोना निवास से छे (अभिक्खणं आहारे ति) पार पा२ माहा२ ४२ छे (जाव अभिक्खणं नीसमंति) यावत् पा२ वा२ निश्वास से छे (से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ) मे ४२थी उ गौतम । मेवु उपाय छ । (मणुस्मा सव्वे णो समाहारा) या मनुष्य समान सा२ an नयी (सेसं जहा नेरइयाणं) शेष रे नाना ४३न प्रमाणे (नवरं किरियाहिं मणूसा तिविहा पण्णत्ता) विशेष के छ है यिायनी अपेक्षाओं मनुष्य त्रय प्रशारना हाय छे (तं जहा) तेगा Anारे (सम्मपिट्ठी) सभ्यटमिच्छादिट्टी) भिया (सम्मामिच्छा दिट्टी) सभ्यभिष्ट (तत्थणं जे ते सम्मदिदी) तेयाम सभ्यGिट छे (ते तिविहा पण्णत्ता) तेयो ! २॥ छ (तं जहां) तेसो मा ४२ (संयता, असंयता, संयतासंयता) सभी, मस'यसी गने सयभास यमी (तत्थणं जे ते संयता) तगामा २ सयभी छ (ते दुविहा) तसा में प्रारना छ
(त जहा) ते 21 प्रहारे (सराग संयता) सर सयभी (वीयरागसंयता य) भने पात।। सयभी. (तत्थणं जे ते वीतरागसंयता) तमामा रे वातासय छ (तण