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प्रास्ताविक
४५.
से लोप हो गया हो । मलयगिरि विरचित वृत्ति का ग्रन्थमान ५०० श्लोक -- प्रमाण है।
जीवाभिगमविवरण :
व्याख्यान के रूप में }
यह टीका तृतीय उपांग जीवाभिगम के पदों के इसमें अनेक प्राचीन ग्रन्थों के नाम एवं उद्धरण हैं । इसी प्रकार कुछ ग्रन्थकारों का नामोल्लेख भी है । उल्लिखित ग्रन्थ ये हैं : धर्मसंग्रहणि- टीका, प्रज्ञापनाटीका, प्रज्ञापना- मूलटीका, तत्त्वार्थ- मूलटीका, सिद्धप्राभृत, विशेषणवती, जीवाभिगम - मूलटीका, पंचसंग्रह, कर्मप्रकृतिसंग्रहणी, क्षेत्रसमास-टीका, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति - टीका, कर्मप्रकृतिसंग्रहणि चूणि, वसुदेवचरित ( वसुदेवहिण्डि ), जीवाभगमिचूर्णि, चन्द्रप्रज्ञप्ति टीका, सूर्यप्रज्ञप्ति टीका, देशीनाममाला, सूर्यप्रज्ञप्ति - नियुक्तिपंचवस्तुक, हरिभद्रकृत तत्त्वार्थ- टीका, तत्त्वार्थ-भाष्य, विशेषावश्यकभाष्य- स्वोपज्ञवृत्ति, पंचसंग्रह - टोका । प्रस्तुत विवरण का ग्रन्थमान १६००० श्लोकप्रमाण है । व्यवहारविवरण:
प्रस्तुत विवरण सूत्र, नियुक्ति एवं भाष्य पर है । प्रारम्भ में टीकाकार ने भगवान् नेमिनाथ, अपने गुरुदेव एवं व्यवहारचूर्णिकार को सादर नमस्कार किया है | विवरण का ग्रन्थमान ३४६२५ श्लोक - प्रमाण है ।
राजप्रश्नीयविवरण :
यह विवरण द्वितीय उपांग राजप्रश्नीय के पदों पर है । इसमें देशीनाममाला, जीवाभिगम मूलटोका आदि के उद्धरण हैं ।
अनेक स्थानों पर सूत्रों के वाचनाभेद - पाठभेद का भी उल्लेख है । टीका का ग्रन्थमान ३७०० श्लोक प्रमाण है ।
पिण्डनियुक्ति-वृत्ति :
यह वृत्ति पिण्डनियुक्ति तथा उसके भाष्य पर है । इसमें अनेक संस्कृत कथानक हैं । वृत्ति के अन्त में आचार्य ने पिण्डनियुक्तिकार द्वादशांगविद् भद्रबाहु तथा पिण्डनियुक्ति-विषमपदवृत्तिकार ( आचार्य हरिभद्र एवं वीरगणि) को नमस्कार किया है । वृत्ति का ग्रन्थमान ६७०० श्लोक - प्रमाण है ।
आवश्यक विवरण :
प्रस्तुत टीका आवश्यक नियुक्ति पर है । इसमें यत्र-तत्र विशेषावश्यकभाष्य की गाथाएँ उद्धृत की गई हैं। विवेचन भाषा एवं शैली दोनों दृष्टियों से सरल
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