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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इस गाथा में कुछ अशुद्धियाँ हैं। इस प्रकार की अनेक अशुद्धियाँ प्रस्तुत प्रति में भरी पड़ी हैं। यह दोष प्रस्तुत प्रति का नहीं अपितु उस मूल प्रति का है जिसकी यह प्रतिलिपि है ।
बृहद्भाष्य के प्रारंभ में ऐसी कुछ गाथाएँ हैं जो लघुभाष्य में बाद में आती है । उदाहरण के रूप में कुछ गाथाएँ यहाँ उद्धृत की जाती है :
कडकरणं दव्वे सासणं तु सच्चेव दव्वतो आणा। दव्वनिमित्तं भयं दोण्ह वि भावे इमं चेव ॥ ३६ ।। दव्ववती दव्वाति जाति गहिताति मुचति ण ताव । आराहणि दव्वस्स तु दोण्ह वि पडिपक्खे भाववई ।। ३७ ॥ दवाण दव्वभूतो दवट्ठाए व वेज्जमातीया । अध दव्वे उवदेसो पण्णवणा आगमो चेव ॥ ३८॥ अणुयोगो ( य णियोगो ) भास विभासा य वत्तियं चेव । एते अणुयोगस्स तु णामा एगट्ठया पंच ॥ ४१ ॥
-बृहत्कल्प-बृहद्भाष्य, पृ० ५-६ ( संशोधित ) कडकरणं दव्वे सासणं तु दव्वे व दव्वओ आणा। दव्वनिमित्तं वुभयं, दुन्नि वि भावे इमं चेव ।। १८४ ।। दव्ववतो दव्वाइं गहियाई मुचइ न ताव । आराहणि दव्वस्स वि, दोहि वि भाक्स्स पडिवक्खो ॥ १८५ ।। दव्वाण दव्वभूओ, दवट्ठाए व विज्जमाईया । अह दववे उवएसो, पन्नवणा आगमे चेव ।। १८६ ।। अणुयोगो य नियोगो, भास विभासा य वत्तियं चेव । एए अणुओगब्स उ, नामा एगठ्ठिया पंच ।। १८७ ॥
-बृहत्कल्प-लघुभाष्य, भा० १. उपयुक्त गाथाओं से यह स्पष्ट है कि दोनों भाष्यों की कुछ गाथाओं में कहीं-कहीं आगे-पीछे हेर-फेर भी हुआ है। बृहद्भाष्यकार ने लघुभाष्य की कुछ गाथाएँ बिना किसी व्याख्यान के वैसी की वैसी भी अपने भाष्य में उद्धृत की हैं। जिनका व्याख्यान करना उन्हें आवश्यक प्रतीत न हुआ उन गाथाओं के 'विषय में उन्होंने यही नीति अपनायी है। उदाहरण के तौर पर लघुभाष्य की नाम और स्थापना मंगलविषयक छठी, सातवीं और आठवीं ये तीन गाथाएँ बृहद्भाष्य में क्रमशः एक साथ दे दी गई है। इनका बृहद्भाष्यकार ने उन प्रसंग पर कोई अतिरिक्त विवेचन नहीं किया है। द्रव्यमंगलविषयक नौवीं गाथा
१. पृ० १८.
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