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मलयगिरिविहित वृत्तियाँ
सूर्यप्रज्ञप्ति विवरण :
विवरण' के प्रारम्भ में मंगल करते हुए आचार्य ने यह उल्लेख किया है कि भद्रबाहुरिकृत नियुक्ति का नाश हो जाने के कारण मैं केवल मूल सूत्र का ही व्याख्यान करूँगा । प्रारम्भ के पाँच श्लोक ये हैं :
यथास्थितं
श्रीवीराय
प्रतिक्षणम् ।
जगत्सर्वमीक्षते यः नमस्तस्यै भास्वने
परमात्मने ।। १ ।। तमच्छिदः ।
श्रुतकेवलिनः सर्वे विजयन्तां
येषां पुरो विभान्तिस्म खद्योता इव तीर्थिकाः ॥ २ ॥ जयति जिनवचनमनुपममज्ञानतमः समूह र विबिम्बम् । शिव सुख फलकल्पतरु प्रमाणनयभंगगमबहुलम् ॥ ३ ॥ सूर्यप्रज्ञप्तिमहं गुरूपदेशानुसारतः किंचित् । विवृणोमि यथाशक्ति स्पष्टं स्वपरोपकाराय ॥ ४ ॥ अस्या निर्युक्तिरभूत् पूर्वं श्रीभद्रबाहुसूरिकृता । कलिदोषात् साऽनेशद् व्याचक्षे केवलं सूत्रम् ॥ ५ ॥ इसके बाद आचार्य ने प्रथम सूत्र का उत्थान करते हुए सूत्र स्पर्शिक व्याख्यान प्रारम्भ किया है । प्रथम सूत्र के व्याख्यान में मिथिला नगरी, मणिभद्र चैत्य, जितशत्रु राजा, धारिणी देवी और महावीर जिन का साहित्यिक छटायुक्त वर्णन किया है । द्वितीय सूत्रको व्याख्या में इन्द्रभूति गौतम का वर्णन है । तृतीय सूत्र की वृत्ति में सूर्यप्रज्ञप्ति के मूल विषय का बीस प्राभृतों में विवेचन है । वे प्राभृत इस प्रकार हैं : १. सूर्यमण्डलों की संख्या, २. सूर्य का तिर्यक परिभ्रम, ३. सूर्य के प्रकाश्यक्षेत्र का परिमाण, ४. सूर्य का प्रकाशसंस्थान, ५. सूर्य का लेश्याप्रतिघात, ६ सूर्य की ओजः संस्थिति, ७. सूर्यलेश्या संसृष्ट पुद्गल, ८. सूर्योदयसंस्थिति, ९. पौरुषीच्छायाप्रमाण, १०. योगस्वरूप, ११. संवत्सरों की आदि, १२. संवत्सरभेद, १३. चन्द्रमा की वृद्ध्यपवृद्धि, १४. ज्योत्सनाप्रमाण, १५. चन्द्रादि का शीघ्रगतिविषयक निर्णय, १६. ज्योत्स्ना - लक्षण, १७. चन्द्रादि का च्यवन और उपपात, १८. चन्द्रादि का उच्चत्वमान, १९. सूर्यसंख्या, २०. चन्द्रादि का अनुभाव 2 इनमें से पहले प्राभृत में आठ, दुसरे में तीन और दसवें में बाईस उपप्राभृत - प्राभूतप्राभृत हैं। आगे की वृत्ति में इन्हीं सब प्राभृतों एवं प्राभृतप्राभृतों का विशद वर्णन है ।
१. आगमोदय समिति, मेहसाना, सन् १९१९.
२. पृ० ६. ३. पृ० ७-८.
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