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मलयगिरिविहित वृत्तियाँ
३९७ 'से कि तं अजीवाभिगमे.....' ( सू० ३-५ ) का व्याख्यान करते हुए तन्तु और पट के सम्बन्ध की चर्चा की है। इसी प्रसंग पर ( मलयगिरिकृत ) धर्मसंग्रहणि टीका का उल्लेख करते हुए आचार्य कहते हैं : कृतं प्रसंगेन, अन्यत्र धर्मसंग्रहणिटीकादावेतद्वादस्य चर्चितत्वात्।' आगे ( मलयगिरिकृत ) प्रज्ञापनाटीका का भी उल्लेख है : अस्य व्याख्यानं प्रज्ञापनाटीकातो वेदितव्यं । तेसि णं भंते ! जीवाणां कति सरीरया...' ( सू० १३ ) के विवेचन में (हरिभद्रकृत ) प्रज्ञापनामूलटीका का उल्लेख किया है : इहाणुत्वबादरत्वे तेषामेवाहारयोग्यानां स्कन्धानां प्रदेशस्तोकत्वबाहुल्यापेक्षया प्रज्ञापनामूलटीकाकारेणापि व्याख्याते इत्यस्माभिरपि तथैवाभिहिते । इसी सूत्र की व्याख्या में तत्त्वार्थमूलटीका का भी उल्लेख है । 'से किं तं नेरइया"...' ( सूत्र ३२) का व्याख्यान करते हुए आचार्य ने संग्रहणिटीका का उल्लेख किया है : प्रतिपृथिवि तूत्कर्षतः प्रमाणं संग्रहणिटीकातो भावनीयं, तत्र सविस्तरमुक्तत्वात्। 'से किं तं थलयर..' ( स० ३६ ) की व्याख्या में माण्डलिक, महामाण्डलिक, ग्राम, निगम, खेट, कर्बट, मडम्ब, पत्तन, द्रोणमुख, आकर, आश्रम, संबाध, राजधानी आदि विविध जन-वसतियों के स्वरूप का निर्देश किया गया है।६ से किं तं मणुस्सा..' ( सू० ४१ ) का विवेचन करते हुए आचार्य ने ज्ञानियों के विविध भेदों पर प्रकार डाला है और बताया है कि सिद्धप्राभृत आदि में अनेक प्रकार के ज्ञानियों का वर्णन है : सिद्धप्राभतादौ तथानेकशोऽभिधानात्..."। आगे विशेषणवती (जिनभद्रकृत ) का भी उल्लेख है।' इत्थिवेदस्स णं भंते ! कम्मस्स' (सू० ५१ ) की व्याख्या में (हरिभद्रकृत जीवाभिगम की) मूलटीका, पंचसंग्रह तथा कर्मप्रकृतिसंग्रहणी का उल्लेख किया गया है । 'णपुंसकस्स णं...' ( सू० ५९) की व्याख्या में एक संग्रहणी-गाथा उघृद्त की गयी है ।° नरकावासों के विस्तार का वर्णन करते हुए टीकाकार ने क्षेत्रसमासटीका और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीका का उल्लेख किया है : परिक्षेपपरिमाणगणितभावना क्षेत्रसमासटीकातो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीकातो वा वेदितव्या ।" रत्नप्रभापृथ्वी के नारकों की वेदना का वर्णन करने के बाद उनकी वैक्रियशक्ति का वर्णन करते समय 'आह च कर्मप्रकृतिसंग्रहणिचणिकारोऽपि' यह कहते हुए आचार्य ने कर्मप्रकृतिसंग्रहणिचूणि के 'पुहुत्तशब्दो बहुत्तवाई' अर्थात् 'पृथक्त्व शब्द बहुत्ववाची है' ये शब्द उद्धृत किये
१. पृ० ५(२). २. पृ० ७ ( २ ). ३. पृ० १९ ( २ ). ४. पृ० १६ (१). ५. पृ० ३३ (२). ६. पृ० ३९. ७. पृ० ४६ (२). ८. पृ० ५० (१). ९. पृ० ६४ (१). १०. पृ० ७७ (२)-७८ (१). ११. पृ० १०८ (१):
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