Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 449
________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास मुनि धर्मसिंह गुजरात और काठियावाड़ में ही विचरा करते थे । गठिया से पीड़ित होने के कारण उनके लिए दूर-दूर का विहार अति कठिन था । ४३ वर्ष तक नई दीक्षा का पालन करने के बाद वि० १७२८ की आश्विन शुक्ला सं० चतुर्थी के दिन उनका स्वर्गवास हुआ । मुनि धर्मसिंह ने २७ सूत्रों के टबों के अतिरिक्त निम्नलिखित गुजराती ग्रंथों की रचना की है : १. समवायांग की हुंडी, २. भगवती का यंत्र, ३. प्रज्ञापना का यंत्र ४ स्थानांग का यंत्र, ५. जीवाभिगम का यंत्र, ६. जम्बू द्वीपप्रज्ञप्ति का यंत्र, ७. चन्द्रप्रज्ञप्ति का यंत्र, ८. सूर्यप्रज्ञप्ति का यंत्र, ९. राजप्रश्नीय का यंत्र, १०. व्यवहार की हुँडी, ११. सूत्रसमाधि की हुंडी, ११ द्रौपदी की चर्चा,, १३. सामायिक की चर्चा, १४. साधु-सामाचारी, १५. चन्द्रप्रज्ञप्ति की टीप | इनके अतिरिक्त उनके लिखे हुए और भी कुछ ग्रन्थ हैं । अभी तक इन ग्रन्थों का प्रकाशन नहीं हो पाया है । हिन्दी टीकाएँ ४४० हिन्दी टीकाओं में मुनि हस्तिमलकृत दशवेकालिक-सौभाग्य चन्द्रिका, नन्दी सूत्र - भाषाटीका, उपाध्याय आत्मारामकृत दशाश्रुतस्कन्ध - गणपतिगुण ३ उत्तराध्ययन- आत्मज्ञानप्रकाशिका, ૪ दशवैकालिक - आत्मज्ञान प्रकाशिका, ५ प्रकाशिका, " उपाध्याय अमरमुनिकृत आवश्यक - विवेचन ( श्रमण-सूत्र ) आदि विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं । इनके अतिरिक्त हिन्दी, गुजराती, अंग्रेजी आदि भाषाओं में अनेक आगमों के अनुवाद एवं सार भी प्रकाशित हुए हैं । १. रायबहादुर मोतीलाल बालमुकुन्द मूथा, सतारा, सन् १९४०, २. रायबहादुर मोतीलाल बालमुकुन्द मूथा, सतारा, सन् १९४२. ३. जैन शास्त्रमाला कार्यालय, लाहौर, सन् १९३६. ४. जैन शास्त्रमाला कार्यालय, लाहौर, सन् १९३९-१९४२. ५. ( अ ) ज्वालाप्रसाद माणकचन्द जौहरी, महेन्द्रगढ़ ( पटियाला ), वि० सं० १९८९. ( आ ) जैन शास्त्रमाला कार्यालय, लाहौर, सन् १९४६. ६. सन्मति ज्ञानपीठ, लोहामंडी, आगरा, वि० सं० २००७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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