________________
द्वादश प्रकरण
नेमिचन्द्रविहित उत्तराध्ययन-वृत्ति
चन्द्रसूरि का दूसरा नाम देवेन्द्रगणि है । प्रारम्भ में ये देवेन्द्रगणि के नाम से ही प्रसिद्ध थे किन्तु बाद में नेमिचन्द्रसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए । इन्होंने 'वि० सं० १९२९ में उत्तराध्ययन पर सुखबोधा नामक एक टीका लिखी । इस टीका में अनेक प्राकृत आख्यान उद्धृत किये गये हैं । इस दृष्टि से नेमिचन्द्रसूरि हरिभद्रसूरि और वादिवेताल शान्तिरि की शैली के अधिक निकट हैं, न कि शीलांकसूर की जिन्होंने इस प्रकार के आख्यान संस्कृत में प्रस्तुत किये हैं ।
उत्तराध्ययन- सुखबोधा वृत्ति' शान्त्याचार्यविहित शिष्यहिता नामक बृहद्वृत्ति के आधार पर बनाई गयी है। उससे सरल एवं सुबोध होने के कारण इसका नाम सुखबोधा रखा गया है । प्रारम्भ में वृत्तिकार ने तीर्थंकरों, सिद्धों, साधुओं एवं श्रुतदेवता को नमस्कार किया है तथा वृद्धकृत ( शान्त्याचार्यकृत ) बह्वर्थ एवं गम्भीर विवरण से समुद्धृत करके आत्मस्मृत्यर्थं तथा जडमति एवं संक्षेपरुचि वालों के हितार्थ बिना पाठान्तर और अर्थान्तर के उत्तराध्ययन की सुखबोधा - वृत्ति • बनाने की प्रतिज्ञा की है :
प्रणम्य
विघ्नसंघातघातिनस्तीर्थनायकान् ।
सिद्धांश्च सर्वसाधू इच, स्तुत्वा च श्रुत देवताम् ॥ १ ॥ आत्मस्मृतये वक्ष्ये, जडमतिसंक्षेपरुचिहितार्थं च । एकैकार्थनिबद्धां, वृति सूत्रस्य सुखबोधाम् ॥ २ ॥ बह्वर्थाद् वृद्धकृताद्, गंभीराद् विवरणात् समुद्धृ त्य । अध्ययनानामुत्तरपूर्वाणामेकपाठगताम्
॥३॥
अर्थान्तराणि पाठान्तराणि सूत्रे च वृद्धटीकात: । बोद्धव्यानि यतोऽयं प्रारम्भो गमनिकामात्रम् ॥ ४ ॥
,
वृत्ति के अन्त में प्रशस्ति है जिसमें वृत्तिकार नेमिचन्द्राचार्य के गच्छ, गुरु, गुरुभ्राता, वृत्तिरचना के स्थान, समय आदि का उल्लेख है । इसी में शान्त्याचार्य के गच्छ आदि का भी उल्लेख है जिनकी वृत्ति के आधार पर प्रस्तुत वृत्ति की रचना की गई है । नेमिचन्द्राचार्य बृहद्गच्छीय उद्योतनाचार्य के - शिष्य उपाध्याय आनदेव के शिष्य हैं । इनके गुरुभ्राता का नाम मुनिचन्द्रसूरि है,
: १. पुष्पचन्द्र खेमचन्द्र, वलाद सन् १९३७ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org