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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास से यह वृत्ति मलयगिरिकृत टीका के हो समकक्ष है । प्रारम्भ में आचार्य ने सर्वज्ञ महावीर, कल्प (बृहत्कल्प) सूत्रकार भद्रबाहु, भाष्यकार संघदासगणि, चूर्णिकार मुनीन्द्र, वृत्तिकार मलयगिरि, शिवमार्गोपदेष्टा स्वगुरु तथा वरदा श्रुतदेवी को नमस्कार किया है एवं मलयगिरिप्रारब्ध कल्पशास्त्रटीका को पूर्ण करने की प्रतिज्ञा की है।' वृत्ति के अन्त में लम्बी प्रशस्ति है ! इसके अनुसार आचार्य क्षेमकीर्ति के गुरु का नाम विजयचन्द्रसूरि था। विजयचन्द्रसूरि आचार्य जगच्चन्द्रसूरि के शिष्य थे। आचार्य क्षेमकीर्ति के दो गुरुभाई थे जिनका नाम वज्रसेन और पद्मचन्द्र था। प्रस्तुत वृत्ति की समाप्ति ज्येष्ठ शुक्ला दशमी वि० सं० १३३२ में हुई है । इस विशाल वृत्ति का ग्रन्थमान ४२६०० श्लोक-प्रमाण है :२ ज्योत्स्नामञ्जुलया यया धवलितं विश्वम्भरामण्डलं,
या निःशेषविशेषविज्ञजनताचेतश्चमत्कारिणी । तस्यां श्रीविजयेन्दुसूरिसुगुरोनिष्कृत्रिमाया गुण
श्रेणेः स्याद् यदि वास्तवस्वतवकृतौ विज्ञः स वाचांपतिः ॥१५॥ तत्पाणिपङ्कजरजःपरिपूतशीर्षाः,
शिष्यास्त्रयो दधति सम्प्रति गच्छभारम् । श्रीवज्रसेन इति सद्गुरुरादिमोऽत्र,
श्रीपद्मचन्द्रसुगुरुस्तु ततो द्वितीयः ॥१६।। तार्तीयीकस्तेषां, विनेयपरमाणुरनणुशास्रेऽस्मिन् । श्रीक्षेमकीर्तिसूरिविनिर्ममे विवृतिमल्पमतिः ॥१७॥ श्रीविक्रमतः कामति, नयनाग्निगुणेन्दुपरिमिते (१३३२) वर्षे । ज्येष्ठश्वेतदशम्यां, समर्थितैषा च हस्ताकें ॥१८।। आवश्यकनियुक्तिदीपिका : ___ माणिक्यशेखरसूरिकृत प्रस्तुत दीपिका आवश्यकनियुक्ति का अर्थ समझने के लिय बहुत ही उपयुक्त टोका है। इसमें नियुक्ति-गाथाओं का अति सरल एवं संक्षिप्त शब्दार्थ तथा भावार्थ दिया गया है। कथानकों का सार भी बहुत ही संक्षेप में समझा दिया गया है । प्रारम्भ में दीपिकाकार ने वीर जिनेश्वर और अपने गुरु मेरुतुगसूरि को नमस्कार किया है एवं आवश्यकनियुक्ति की दीपिका लिखने का संकल्प किया है।
१. का० १-८.
२. पृ० १७१२. ३. विजयदानसूरीश्वर जैन ग्रंथमाला, सूरत, सन् १९३९-१९४९.
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