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अन्य टीकाएँ
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जैन आचार्यों ने आगमिक टीकाएं लिखी है। मुनि घासीलालकृत उपासकदशांग' आदि की टोकाएँ विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं। ये टीकाएं शब्दार्थ-प्रधान हैं । विजयराजेन्द्रसूरिकृत कल्पसूत्रार्थप्रबोधिनी कल्पसूत्र की एक स्पष्ट व्याख्या है।
१. संस्कृत-हिन्दी-गुजराती टोकासहित-श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन संघ,
कराची, सन् १९३६. २. राजेन्द्र प्रवचन कार्यालय, खुडाला ( फालना ), सन् १९३३.
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