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श्रीचन्द्रसूरिविहित व्याख्याएँ
४१९ के कठिन पदों का व्याख्यान प्रारम्भ किया है । बीच-बीच में अपने वक्तव्य की पुष्टि के लिए प्राकृत गाथाएँ उद्धृत की हैं।'
अन्त में व्याख्याकार ने अपना नामोल्लेख करते हुए बताया है कि प्रस्तुत व्याख्या सं० १२२७ में महावीर-जन्मकल्याण के दिन रविवार को पूर्ण हुई। इसका ग्रन्थमान ११२० श्लोक प्रमाण है :
जीतकल्पबहच्चौँ व्याख्या शास्त्रानुसारतः। श्रीचन्द्रसूरिभिर्दब्धा स्वपरोपकृतिहेतवे ॥१॥ मुनिनयनतरणि (१२२७) वर्षे श्रीवीरजिनस्य जन्मकल्याणे । प्रकृतग्रन्थकृतिरियं निष्पत्तिमवाप रविवारे ॥२॥ ........................................................ एकादशशतविंशत्यधिकश्लोकप्रमाणग्रन्थानम् । ग्रन्थकृतिः प्रविवाच्या मुनिपुङ्गवसूरिभिः ॥४॥ यदिहोत्सूत्रं किञ्चिद् दृब्धं छद्मस्थबुद्धिभावनया । तन्मयि कृपानुकलितैः शोध्यं गीतार्थविद्वद्भिः॥५॥
१. पृ० ३६, ३८, ३९, ४४, ४९.
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