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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वर्णः पदमथ वाक्यं पद्यादि च यन्मया परित्यक्तम् ।
तच्छोधनीयमत्र च व्यामोहः कस्य नो भवति ।। ४ ॥ इसी श्रुतस्कन्ध के अन्त में यह भी उल्लेख है कि आचार्य शीलांक निवृति कुल के थे, उनका दूसरा नाम तत्त्वादित्य था तथा उन्हें प्रस्तुत टीका बनाने में वाहरिसाधु ने सहायता दी थी : तदात्मकस्य ब्रह्मचर्याख्यश्रुतस्कन्धस्य निर्वृतिकुलीनश्रीशोलाचार्येण तत्त्वादित्यापरनाम्ना वाहरिसाधुसहायेन कृता टीका परिसमाप्तेति ।' पूरी टीका का ग्रंथमान १२००० श्लोकप्रमाण है। सूत्रकृतांगविवरण :
शीलांकाचार्यविहित प्रस्तुत विवरण सूत्रकृतांग मूल एवं उसकी नियुक्ति पर है। प्रारंभ में आचार्य ने जिनों को नमस्कार किया है एवं प्रस्तुत विवरण लिखने की प्रतिज्ञा की है :
स्वपरसमयार्थसूचकमनन्तगमपर्ययार्थगुणकलितम् । सूत्रकृतमङ्गमतुलं विवृणोमि जिनान्नमस्कृत्य ।। १॥ व्याख्यातमङ्गमिह यद्यपि सूरिमुख्यैर्भक्त्या
तथापि विवरीतुमहं यतिष्ये । कि पक्षिराजगतमित्यवगम्य सम्यक्,
तेनैव वाञ्छति पथा शलभो न गन्तुम् ।। २ ॥ ये मय्यवज्ञां व्यधुरिद्धबोधा,
जानन्ति ते किञ्चन तानपास्य । मत्तोऽपि यो मन्दमतिस्तथार्थी,
तस्योपकाराय ममैष यत्नः ॥ ३ ॥ आचार्य ने विवरण को सब दृष्टियों से सफल बनाने का प्रयत्न किया है और इसके लिए दार्शनिक दृष्टि से वस्तु का विवेचन, प्राचीन प्राकृत एवं संस्कृत
१. पृ. ३१६ (२). २. पृ. ४३२. ३. (अ) आगमोदय समिति, मेहसाना, सन् १९१७.
(आ) हर्षकुलकृत विवरणसहित-भीमसी माणेक, बम्बई, वि. सं. १९३६.
(इ) हिन्दी अर्थसहित (प्रथम श्रुतस्कन्ध)-महावीर जैन ज्ञानोदय सोसायटी, राजकोट, वि. सं. १९९३-५.
(ई) साधुरंगरचितदीपिकासहित-गौडीपावं जैन ग्रन्थमाला, बम्बई, सन् १९५० (प्रथम श्रुतस्कन्ध).
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