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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
सनबंधन, मरकत, मसार, इहामृग, व्यालक, आजिनक, रूत, बर, तूल, गण--- नायक, दंडनायक, राजा, ईश्वर ( युवराज ), तलवर, माडविक, कौटुम्बिक, मन्त्री, महामन्त्री, गणक, दौवारिक, अमात्य, चेट, पीठमद, नागर, नगम, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, दूत, संधिपाल आदि अनेक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक, सामाजिक, प्रशासनविषयक एवं शास्त्रीय शब्दों का अर्थ स्पष्ट किया है । यत्रतत्र पाठांतरों एवं मतान्तरों का भी निर्देश किया है। अन्त में वृत्तिकार ने अपने नाम के साथ ही साथ अपने कुल और गुरु का नाम दिया है तथा बताया है कि प्रस्तुत वृत्ति का संशोधन द्रोणाचार्य ने अणहिलपाटक नगर में किया :१
चन्द्रकुलविपुलभूतलयुगप्रवरवर्धमानकल्पतरोः । कुसुमोपमस्य सूरेः गुणसौरभभरितभवनस्य ॥ १ ।। निस्सम्बन्धविहारस्य सर्वदा श्रीजिनेश्वराह्वस्य । शिष्येणाभयदेवाख्यसूरिणेयं कृत वृत्तिः ॥२॥ अहिलपाटकनगरे श्रीमद्रोणाख्यसूरिमुख्येन।
पण्डितगुणेन गुणवत्प्रियेण संशोधिता चेयम् ॥ ३॥ वृत्ति का ग्रन्थमान ३१२५ श्लोक-प्रमाण है
१. आगमोदय-संस्करण, पृ० ११९.
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