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दशम प्रकरण
मलयगिरिविहित वृत्तियाँ
आचार्य मलयगिरि की प्रसिद्धि टीकाकार के रूप में ही है, न कि ग्रन्थकार के रूप में । इन्होंने जैन आगम-ग्रन्थों पर अति महत्त्वपूर्ण टीकाएं लिखी हैं। ये टीकाएं विषय की विशदता, भाषा की प्रासादिकता, शैली की प्रौढ़ता एवं निरूपण की स्पष्टता आदि सभी दृष्टियों से सुसफल हैं । मलयगिरिसूरि का स्वल्प परिचय इस प्रकार है :
आचार्य मलयगिरि ने अपने ग्रन्थों के अन्त की प्रशस्ति में 'यदवापि मलयगिरिणा, सिद्धिं तेनाश्नुतां लोकः' इस प्रकार सामान्य नामोल्लेख के अतिरिक्त अपने विषय में कुछ भी नहीं लिखा है। इसी प्रकार अन्य आचार्यों ने भी इनके विषय में प्रायः मौन ही धारण किया है। केवल पन्द्रहवीं शताब्दी के एक ग्रन्थकार जिनमण्डनगणि ने अपने कुमारपालप्रबन्ध में आचार्य हेमचन्द्र की विद्यासाधना के प्रसंग का वर्णन करते समय आचार्य मलयगिरि से सम्बन्धित कुछ बातों का उल्लेख किया है । वर्णन इस प्रकार है:
हेमचन्द्र ने गुरु की आज्ञा लेकर अन्य गच्छोय देवेन्द्रसूरि और मलयगिरि के साथ कलाओं में कुशलता प्राप्त करने के लिए गौडदेश की ओर विहार किया। मार्ग में खिल्लूर ग्राम में एक साधु बीमार था। उसकी तीनों ने अच्छी तरह सेवा की। वह साधु रैवतक तीर्थ (गिरनार ) की यात्रा के लिए बहुत आतुर था। उसकी अन्तिम समय की इच्छा पूरी करने के लिए गाँव के लोगों को समझा-बुझाकर डोली का प्रबन्ध कर वे लोग सो गए। सबेरे उठकर क्या देखते है कि तीनों जने रैवतक में बैठे हुए हैं। इसी समय शासनदेवी ने आकर उन्हें कहा कि आप लोगों का इच्छित कार्य यहीं सम्पन्न हो जाएगा। अब आपको गौडदेश में जाने की कोई आवश्यकता नहीं। यह कह कर अनेक मन्त्र, औषधि आदि देकर देवी अपने स्थान पर चली गई।
एक समय गुरु ने उन्हें सिद्धचक्र मन्त्र दिया ।....."तीनों ने अम्बिकादेवी की सहायता से भगवान् नेमिनाथ ( रैवतकदेव ) के सामने बैठकर सिद्धचक्र
१. इसका आधार मुनि श्री पुण्यविजयजी द्वारा सम्पादित पंचम तथा षष्ठ कर्मग्रन्थ ( आत्मानन्द जैन ग्रंथमाला, ८६ ) की प्रस्तावना है।
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