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अभयदेवविहित वृत्तियाँ
३६७ प्रभावित कर उसी के मकान में ठहर गए। जब यह बात चैत्यवासियों को मालूम हुई तो वे तुरन्त पुरोहित के पास पहुंचे और उसे उन्हें निकालने के लिए बाध्य किया । पुरोहित सोमेश्वर ने उनकी बात मानने से इनकार करते हुए कहा कि इसका निर्णय राजसभा ही कर सकती है। चैत्यवासी राजा से मिले और उसे वनराज के समय से पाटन में स्थापित चैत्यवासियों को सार्वभौम सत्ता का इतिहास बताया जिसे सुनकर दुर्लभराज को भी लाचार होना पड़ा। अन्त में उसने अपने व्यक्तिगत प्रभाव का उपयोग कर उन साधुओं को वहाँ रहने देने का आग्रह किया जिसे चैत्यवासियों ने स्वीकार किया। ___ इस घटना को देख कर पुरोहित सोमेश्वर ने राजा से प्रार्थना की कि सुविहित साधुओं के लिए एक स्वतन्त्र उपाश्रय का निर्माण कराया जाए। राजा ने इस कार्य का भार अपने गुरु शैवाचार्य ज्ञानदेव पर डाला। परिणाम स्वरूप पाटन में उपाश्रय बना।
कुछ समय बाद जिनेश्वरसूरि ने धारानगरी की ओर विहार किया। धारानिवासी सेठ धनदेव के पुत्र अभयकुमार को दीक्षित कर अभयदेव के नाम से अपना शिष्य बनाया। योग्यता प्राप्त होने पर वर्धमानसूरि के आदेश से अभयदेव को आचार्य-पद प्रदान कर अभयदेवसूरि बना दिया गया।
वर्धमानसूरि का स्वर्गवास होने के बाद अभयदेवसूरि पत्यपद्र नगर में रहे। वहाँ उन्होंने स्थानांग आदि नव अंगों पर टीकाएं लिखीं। टीकाएं समाप्त कर अभयदेव धवलक-धोलका नगर में पहुँचे । वहाँ उन्हें रक्तविकार की बीमारी हो गई जो थोड़े समय बाद ठीक हो गई। प्रभावक-चरित्र में इसका श्रेय धरणेन्द्र को दिया गया है। अभयदेवसूरि शासन को प्रभावना करते हुए राजा कणं की राजधानी पाटन में योगनिरोध द्वारा वासना को परास्त कर स्वर्गवासी हुए। . प्रभावकचरित्रकार के मतानुसार ऐसा प्रतीत होता है कि अभयदेव ने पत्यपद्र नगर में जाने के बाद अंग-साहित्य की टीकाएं लिखी थीं। यह मान्यता स्वयं अभयदेव के उल्लेखों से खण्डित होती है। इन्होंने अनेक स्थानों पर इन टीकाओं की रचना पाटन में होने का उल्लेख किया है और लिखा है कि पाटन के संघ प्रमुख द्रोणाचार्य प्रभृति ने इनका आवश्यक संशोधन किया है। __ प्रभावकचरित्र में अभयदेव के स्वर्गवास का समय नहीं दिया गया है। इसमें केवल इतना हो लिखा है कि 'वे पाटन में कर्णराज के राज्य में स्वर्गवासी हुए।' पट्टावलियों में अभयदेवसूरि का स्वर्गवास वि. सं. ११३५ में तथा दूसरे मत के अनुसार वि. सं. ११३९ में होने का उल्लेख है । उनमें पाटन के बजाय कपडवंज ग्राम में स्वर्गवास होना बताया गया है ।
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