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निशीथ-विशेषचूर्णि
३१५ इसी में आर्य कालक की कथा भी दी गई है। विद्याबल आदि की सिद्धि का वर्णन करते हुए चूर्णिकार कहते हैं : जहा-कालगऽज्जेण गद्दभिल्लो सासिओ ? को उ गद्दभिल्लो ? को वा कालगऽज्जो ? कम्मि वा कज्जे सासितो? भण्णति ।' यह कह कर उन्होंने संक्षेप में आर्य कालक, उनकी भगिनी रूपवती और उज्जयिनी के राजा गर्दभिल्ल का पूरा कथानक दिया है। एकादश उद्देश :
दशम उद्देश के अंतिम सूत्र में वस्त्र-ग्रहण पर प्रकाश डाला गया है । एकादश उद्देश के प्रारंभ में पात्र ग्रहण की चर्चा है। इस उद्देश का तृतीय एवं षष्ठ सूत्र चूर्णि में नहीं है। इसी प्रकार अन्य उद्देशों में भी कुछ सूत्रों की न्यूनाधिकता है । 'जे भिक्ख अप्पाणं बोभावेति...' 'जे भिक्ख परं बीभावेति "..' (सू० ६४-५ ) की व्याख्या में चूर्णिकार ने भय के चार एवं सात भेदों को चर्चा की है । भय के चार भेद ये हैं : १. पिशाचादि से उत्पन्न भय, २. मनुष्यादि से उत्पन्न भय, ३. वनस्पति आदि से उत्पन्न भय और ४. निर्हेतुक अर्थात् अकस्मात् उत्पन्न होनेवाला भय । भय के सात भेद इस प्रकार हैं : १. इहलोकभय, २. परलोकभय, ३. आदानभय, ४. आजीवनाभय, ५. अकस्माद्भय ६. मरणभय और ७. अश्लोकभय ।२ इन भेदों का जैन साहित्य में साधारणतया उल्लेख पाया जाता है। चूर्णिकार ने इस प्रश्न पर विचार किया है कि इन सात भेदों का चार भेदों में कैसे समावेश हो सकता है ? जो साधु खुद को अथवा दूसरे को अथवा दोनों को डराता है उसके लिए भय का कारण विद्यमान होने की दशा में चतुर्लघु तथा अविद्यमान होने की अवस्था में चतुर्गुरु प्रायश्चित्त का विधान है। ____ अयोग्य दीक्षा का निषेध करने वाले सूत्र 'जे भिक्ख णायगं वा..... अणलं वा पनावेइ, पव्वावेंतं वा सातिज्जति' (सू. ८४ ) का विवेचन करते हुए आचार्य ने अड़तालीस प्रकार के व्यक्तियों को प्रवज्या के लिए अयोग्य माना है । इनमें अठारह प्रकार के पुरुष हैं, बीस प्रकार की स्त्रियां हैं और दस प्रकार के नपुंसक हैं। बालदीक्षा का निषेध करते हुए बाल के तीन भेद किये हैं : उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य : सात-आठ वर्ष की आयु का बालक उत्कृष्ट बाल है । पांच-छ: वर्ष की आयु का बालक मध्यम बाल है । चार वर्ष तक की आयु का बालक जघन्य बाल है। इसी प्रकार वृद्ध, जड़, रोगी, उन्मत्त, मूढ आदि अयोग्य पुरुषों का भी भेदोपभेदपूर्वक वर्णन किया गया है। पंडक१. तृतीय भाग, पृ० ५८-९ २. पृ० १८५-६. १. पृ. २२९-२३०.
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