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टीकाएँ
प्रथम प्रकरण
टीकाएँ और टीकाकार
टीकाओं से हमारा अभिप्राय संस्कृत टीकाओं से है। नियुक्तियों, भाष्यों और चूणियों की रचना के बाद जैन आचार्यों ने संस्कृत में भी अनेक टीकाएँ लिखीं। इन टीकाओं के कारण जैन साहित्य के क्षेत्र में काफी विस्तार हआ। प्रत्येक आगम-ग्रन्थ पर कम-से-कम एक टीका तो लिखी ही गई। टीकाकारों ने प्राचीन भाष्य आदि के विषयों का विस्तृत विवेचन किया तथा नये-नये हेतुओं द्वारा उन्हें पुष्ट किया। टीकाकारों में हरिभद्रसुरि, शीलांकसूरि, वादिवेताल शान्तिसूरि, अभयदेवसूरि, मलय गिरि, मलधारी हेमचन्द्र आदि प्रमुख हैं। इन आचार्यों के अतिरिक्त और भी ऐसे अनेक टीकाकारों के नाम मिलते हैं जिनमें से कुछ की टीकाएँ उपलब्ध हैं और कुछ की अनुपलब्ध। कुछ ऐसी टीकाओं को प्रतियाँ अथवा उल्लेख भी मिलते है जिनके लेखकों के नाम नहीं मिलते । जिनरत्नकोश आदि में निम्नलिखित ऐसे आचार्यों के नाम उल्लिखित हैं जिन्होंने आगम-साहित्य पर टीकाएँ लिखी हैं :--
जिनभद्रगणि, हरिभद्रसूरि, कोट्याचार्य, कोट्यार्य ( कोट्टार्य ), जिनभट, शीलांकसूरि, गंधहस्ती, वादिवेताल शान्तिसूरि, अभयदेवसूरि, द्रोणसूरि, मलयगिरि, मलधारी हेमचन्द्र, देवेन्द्रगणि, नेमिचन्द्रसूरि,श्रीचन्द्रसूरि, श्रीतिलकसूरि, क्षेमकीर्ति, भुवनतुंगसूरि, गुणरत्न, विजयविमल, वानरषि, हीरविजयसूरि, शान्तिचन्द्रगणि, जिनहंस, हर्षकुल, लक्ष्मीकल्लोलगणि, दानशेखरसूरि, विनयहंस, नमिसाधु, ज्ञानसागर, सोमसुन्दर, माणिक्यशेखर, शुभवर्धनगणि, धीरसुन्दर, कुलप्रभ, राजवल्लभ, हितरुचि, अजितदेवरि, साधुरंग उपाध्याय, नर्षिगणि, सुमतिकल्लोल, हर्षनन्दन, मेघराज वाचक, भावसागर, पद्मसुन्दरगणि, कस्तुरचन्द्र, हर्षवल्लभ उपाध्याय, विवेकहम उपाध्याय, ज्ञानविमलसूरि, रामचन्द्र, रत्नप्रभसूरि, समरचन्द्रसूरि, पद्मसागर, जीवविजय, पुण्यसागर, विनयराजगणि, विजयसेनसूरि, हेमचन्द्रगणि, विशालसुन्दर, सौभाग्यसागर, कीर्तिवल्लभ, कमलसंयम उपाध्याय, तपोरन वाचक, गुणशेखर, लक्ष्मीवल्लभ, भावविजय, धर्ममंदिर उपाध्याय, उदयसागर, मुनिचन्द्रसूरि, ज्ञानशीलगणि, ब्रह्मर्षि, अजितचन्द्र
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