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त्रयोदश प्रकरण बृहत्कल्पचूर्णि
यह चूणि' मूल सूत्र एवं लघु भाष्य पर है । इसकी भाषा संस्कृतमिश्रित प्राकृत है । प्रारम्भ में मंगल की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है। प्रस्तुत चूणि का प्रारम्भ का यह अंश दशाश्रुतस्कन्धणि के प्रारम्भ के अंश से बहुत कुछ मिलता-जुलता है । इन दोनों अंशों को यहाँ उद्धृत करने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि उनमें कितना साम्य है : ____मंगलादीणि सत्थाणि मंगलमज्झाणि मंगलावसाणाणि । मंगलपरिग्गहिया य सिस्सा सुत्तत्थाणं अवग्गहेहापायधारणासमत्था भवंति । तानि चाऽऽदि-मध्याऽवसानमंगलात्मकानि सर्वाणि लोके विराजन्ति विस्तारं च गच्छन्ति । अनेन कारणेनादौ मंगलं मध्ये मंगलमवसाने मंगलमिती । आदि मंगलग्गहणेणं तस्स स सत्थस्स अविग्धेण लहु पार गच्छन्ति । मज्झमंगलगहणेणं तं सत्थं थिरपरिजियं भवइ । अवसाणमंगलग्गहणणं तं सत्थं सिस्स-पसिस्सेसु अव्वोच्छित्तिकरं भवइ । तत्रादौ मंगलं पापप्रतिषेधकत्वादिदं सूत्रम्
-बृहत्कल्पचूणि, पृ० १. मंगलादीणि सत्थाणि मंगलमज्झाणि मंगलावसाणाणि मंगलपरिग्गहिता य सिस्सा अवग्गहेहापायधारणासमत्था अविग्घेण सत्थाणं पारगा भवंति । ताणि य सत्थाणि लोगे वियरंति वित्थारं च गच्छति । तत्थादिमंगलेण निव्विग्घेण सिस्सा सत्थस्स पारं गच्छन्ति । मज्झमंगलेण सत्थं थिरपरिचिअं भवइ । अवसाणमंगलेणं सत्थं सिस्स-पसिस्सेसु परिचयं गच्छति । तत्थादिमंगलं"
-दशाश्रुतस्कन्धचूर्णि, पृ० १. ___ इन दोनों पाठों में बहुत समानता है। ऐसा प्रतीत होता है कि दशाश्रुतस्कन्धचूणि के पाठ के आधार पर बृहत्कल्पचूणि का पाठ लिखा गया । दशाश्रुतस्कन्धणि का उपयुक्त पाठ संक्षिप्त एवं संकोचशील है, जबकि बृहत्कल्पचूणि का पाठ विशेष स्पष्ट एवं विकसित प्रतीत होता है । भाषा की दृष्टि से भी दशाश्रुत स्कन्धचूणि बृहत्कल्पचूणि से प्राचीन मालूम होती है । जितना बृहत्कल्पचूणि पर संस्कृत का प्रभाव है उतना दशाश्रुतस्कन्वणि पर नहीं है । इन तथ्यों को देखते १. इस चूणि की हस्तलिखित प्रति के लिए मुनि श्री पुण्यविजयजी का कृतज्ञ हूँ
जिन्होंने अपनी निजी संशोधित प्रति मुझे देने की कृपा की ।
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