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मुइंग
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सूत्रांक सूत्रपाठ
चूणिपाठ पुन्वरत्तावरत्तकालसमयसि
पुन्बरत्तावरत्तंसि
मुरव पट्टेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं जिय पट्टेहि णिउणेहिं जिय
उण्होदएहि य पित्तिज्जे
पेत्तेज्जए अंतरावास
अंतरवास १२३
अंतगडे पज्योसवियाणं
पज्जोमविए २८१ अणट्ठाबंधिस्स
अट्ठाबंधिस्स इस प्रकार के पाठभेदों के अतिरिक्त सूत्र-विपर्यास भी देखने में आते हैं। उदाहरण के लिए इसी अध्ययन के सूत्र १२६ और १२७ चूणि में विपरीत रूप में मिलते हैं। इस प्रकार आचार्य पृथ्वीचन्द्र विरचित कल्प-टिप्पना में भी अनेक जगह पाठभेद दिखाई देता है।
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