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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अ, क, च, ट, त, प, य और श-इन वर्गों के अक्षरों का प्रथम गाथा के निर्देशानुसार संयोग करने से 'जिणदास' शब्द बन जाता है। दूसरी गाथा में 'गणि' और 'महत्तर' शब्दों का निर्देश है । इस प्रकार इन तीनों शब्दों का क्रमशः संयोग करने पर "जिणदासगणिमहत्तर' शब्द बन जाता है। प्रस्तुत चूणि जिनदासगणि महत्तर की कृति है । इसका नाम, जैसा कि पहले कहा जा चुका है, निशीथ-विशेषचूणि अथवा, विशेष-निशीथचूर्णि है।
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