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दशवकालिकचूर्णि
२९७ यह गाथा अर्थरूप से तो दोनों ही चूर्णियों में है किन्तु गाथारूप से अधूरी या पूरी एक में भी नहीं है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि दोनों चूर्णिकारों और टीकाकार हरिभद्र ने नियुक्ति-गाथाएँ समानरूप से उद्धृत नहीं की है। दोनों चूर्णिकारों में एतद्विषयक काफी समानता है, जबकि हरिभद्रसूरि इन दोनों से इस विषय में बहुत भिन्न हैं। इस विषय पर अधिक प्रकाश डालने के लिए विशेष अनुशीलन की आवश्यकता है।
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