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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
असत्यमृषा आदि का विचार किया गया है । अष्टम अध्ययन की चूणि में इन्द्रियादि प्रणिधियों का विवेचन किया गया है । नवम अध्ययन की चूणि में लोकोपचारविनय, अर्थविनय, कामविनय, भयविनय, मोक्षविनय आदि की व्याख्या की गयी है । दशम अध्ययन में भिक्षुसम्बन्धी गुणों पर प्रकाश डाला गया है। चूलिकाओं की चूणि में रति, अरति, विहारविधि, गहिवैयावृत्यनिषेध, अनिकेतवास आदि विषयों से सम्बन्धित विवेचन है। चूणिकार ने स्थान-स्थान पर अनेक ग्रन्थों के नामों का निर्देश भी किया है।'
ओघनियुक्ति-पृ. १७५, पिण्डनियुक्ति
१. तरंगवती-पृ. १०६,
पृ. १७८ आदि ।
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