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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तेसि सोसेण इमा कलसभवमइंदणामधेज्जेणं । दसकालियस्स चुण्णी पयाणरयणातो उवण्णत्था ।। ३ ।। रुयिरपदसंधिणियता छड्डियपुणरुत्तवित्थरपसंगा। बक्खाणमंतरेणावि सिस्समतिबोधणसमत्था ॥ ४ ॥ ससमयपरसमयणयाण जं च ण समाधितं पमादेणं । तं खमह पसाहेह य इय विण्णत्ती पवयणीणं ।। ५ ।।
चर्णिकार का नाम कलशभवमृगेन्द्र अर्थात् अगस्त्यसिंह है। कलश का अर्थ है कुंभ, भव का अर्थ है उत्पन्न और मृगेन्द्र का अर्थ है सिंह । कलशभव का अर्थ हुआ कुंभ से उत्पन्न होनेवाला अगस्त्य । अगस्त्य के साथ सिंह जोड़ देने से अगस्त्यसिंह बन जाता है । अगस्त्यसिंह के गुरु का नाम ऋषिगुप्त है। ये कोटिगणीय वज्रस्वामी की शाखा के हैं ।
प्रस्तुत प्रति के अन्त में कुछ संस्कृत श्लोक हैं जिनमें मूल प्रति का लेखन कार्य सम्पन्न कराने वाले के रूप में शान्तिमति के नाम का उल्लेख है :
सम्यक् शान्तिमतिर्व्यलेखयदिदं मोक्षाय सत्पुस्तकम् । _प्रस्तुत चूणि के मूल सूत्रपाठ, जिनदासगणिकृत चूणि के मूल सूत्रपाठ तथा हरिभद्रकृत टीका के मूल सूत्रपाठ इन तीनो में कहीं-कहीं थोड़ा-सा अन्तर हैं। नीचे इनके कुछ नमूने दिये जाते हैं जिनसे यह अन्तर समझ में आ सकेगा। यही बात अन्य सूत्रों के व्याख्याग्रन्थों के विषय में भी कही जा सकती है । दशवैकालिक सूत्र की गाथाओं' के अन्तर के कुछ नमूने इस प्रकार हैं : अध्ययन गाथा अगस्त्यसिंहकृत ' जिनदासकृत हरिभद्रकृत १ . चूर्णि. .. चूर्णि
चूर्णि १. ३ मुक्का
मुत्ता
मुत्ता १३ साहबो
साहुणो
साहुणो १ ४ अहागडेहि. .. अहाकडेसु... अहागडेसु" पुप्फेहिं :पुप्फेहिं
पुप्फेसु कहं णु कुज्जा ... ... कतिहं कुज्जा , कहं णु कुज्जा कतिहं कुज्जा(पाठान्तर) कयाहं कुज्जा (पाठा.) कतिहं कुज्जा (पा.) कयाहं कुज्जा (,,) कहं ण कुज्जा (,,) कयाहं कुज्जा (ो कह सकुज्जा (,)
कथमहं ( कहहं ) १. गाथा-संख्या का आधार मुनि श्री पुण्यविजयजी द्वारा तैयार की गई दश
वैकालिक की हस्तलिखित प्रति है ।
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