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दशम प्रकरण
बृहत्कल्प-बृहद्भाष्य यह भाष्य जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, बृहत्कल्प-लघुभाष्य से आकार में बड़ा है । दुर्भाग्य से यह अपूर्ण ही उपलब्ध है। इसमें पीठिका और प्रारम्भ के दो उद्देश तो पूर्ण हैं किन्तु तृतीय उद्देश अपूर्ण है। अन्त के तीन उद्देश अनुपलब्ध हैं। भाष्य का यह अंश लिखा अवश्य गया है, जैसा कि आचार्य क्षेमकीर्ति की टीका से स्पष्ट है । प्रस्तुत भाष्य में लघुभाष्य समाविष्ट है । लघुभाष्य की प्रथम गाथा है :
काऊण नमोक्कारं, तित्थयराणं तिलोगमहियाणं ।
अप्पव्ववहाराणं, वक्खाणविहिं पवक्खामि ।। १ ॥ बृहद्भाष्य की भी प्रथम गाथा है :
काऊण नमोक्कारं, तित्थकराणं तिलोकमहिताणं ।
कप्पव्ववहाराणं, वक्खाणविधि पवक्खामि ॥ इन दोनों गाथाओं में कहीं-कहीं अक्षरभेद अर्थात् अक्षर-परिवर्तन है। इसी प्रकार का परिवर्तन अन्य गाथाओं में भी दृष्टिगोचर होता है । लघुभाष्य की दूसरी गाथा है :
सक्कयपाययवणाण विभासा जत्थ जुज्जते जंतु ।
अज्झयणनिरुत्ताणि य, वक्खाणविही य अणुओगो ॥२॥ यह गाथा बृहद्भाष्य में बहुत दूर है। लगभग सौ गाथाओं के बाद यह गाथा दी गई है। बीच की ये सब गाथाएं प्रथम गाथा के विवेचन के रूप में है। बृहद्भाष्य में उपयुक्त गाथा कुछ परिवर्तन के साथ इस प्रकार है :
सब्भगपायतवयणाण विभासा जच्छ कुज्झते जातु ।
अब्भयणिरुत्ताणिय वत्तव्वाई जहाकमसो ॥ १. यह भाष्य मुनि श्री पुण्यविजयजी की असीम कृपा से हस्तलिखितरूप में प्राप्त हुआ एतदर्थ मुनि श्री का अत्यन्त आभारी हूँ।
२. आह च बहद्भाष्यकृत्-रत्ति दवपरिवासे, लहुगा दोसा हवंत णेगविहा । बृहत्कल्पलघुभाष्य, गा० ५९८१ की व्याख्या ( उद्देश ५,
पृ० १५८०). ३. पृ० १४.
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