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'पञ्चकल्प-महाभाष्य
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तह भंडपायणा।' प्रकल्प सकारण होता है जबकि विकल्प निष्कारण होता है : कारणे पकप्पो होती, विकप्पो णिक्कारणे मुणेयव्वो। संकल्प प्रशस्त और अप्रशस्त दो प्रकार का होता है । दर्शन-ज्ञान-चारित्रविषयक संकल्प प्रशस्त है। इंद्रिय-विषय-कषायविषयक संकल्प अप्रशस्त है। उपकल्प, क्रिया और उपनयन एकार्थक हैं : उवकप्पती करेति उवणेइ व होति एगट्ठा । ज्ञान और चारित्र से समृद्ध पूर्वाचार्यों का अनुकरण करना अनुकल्प है।" ऊर्ध्वकल्पी होना अथवा छिन्नकल्पी होना उत्कल्प कहलाता है। निष्कृप अर्थात् कृपाहीन तथा निरनुकम्प अर्थात् अनुकम्पाहीन होकर प्रवृत्ति करना अकल्प कहलाता है।' नित्य निंदित प्रवृत्ति करना दुष्कल्प है। नित्य प्रशंसित प्रवृत्ति करना सुकल्प है।
चतुर्थ कल्प के अन्तर्गत निम्नलिखित बीस कल्पों का समावेश किया गया है : १. नामकल्प, २. स्थापनाकल्प, ३. द्रव्यकल्प, ४. क्षेत्रकल्प, ५. कालकल्प, ६. दर्शनकल्प, ७. श्रुतकल्प, ८. अध्ययनकल्प, ९. चारित्रकल्प, १०. उपधिकल्प, ११. संभोगकल्प, १२. आलोचनाकल्प, १३. उपसम्पदाकल्प, १४. उद्देशकल्प, १५. अनुज्ञाकल्प, १६ अध्वकल्प, १७. अनुवासकल्प (स्थित और अस्थित), १८. जिनकल्प, १९. स्थविरकल्प और २०. अनुपालनाकल्प । इसकी निम्नोक्त तीन द्वारगाथाएँ है :
कप्पेसु णामकप्पो, ठवणाकप्पो य दवियकप्पो य । खित्ते काले कप्पो, दंसणकप्पो य सुयकप्पो ॥१६७०॥ अज्झयण चरित्तम्मि य, कप्पो उवही तहेव संभोगो । आलोयण उवसंपद तहेव उद्देसणुण्णाए ॥१६७१॥ अद्धाणम्मि य कप्पो, अणुवासे तह य होइ ठितकप्पो ।
अहितकप्पो य तहा, जिणथेर अणुवालणाकप्पो ॥१६७२।। भाष्यकार ने इन बीस प्रकार के कल्पों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। पंचम कल्प के बयालीस भेद हैं : १. द्रव्य, २. भाव, ३. तदुभय, ३. करण, ५. विरमण, ६. सदाधार, ७. निर्वेश, ८. अन्तर, ९. नयांतर, १०. स्थित, ११. अस्थित, १२. स्थान, १३. जिन, १४. स्थविर, १५, पर्युषण, १६. श्रुत, १७. चारित्र, १८. अध्ययन, १९. उद्देश, २०. वाचना, २१. प्रत्येषणा, २२. परिवर्तना, २३. अनुप्रेक्षा, २४. यात, २५. अयात, २६. चीणं, २७. अचीर्ण, २८.
१. गा० १५९१, २. गा० १६०३. ३. गा० १६२९-१६३०. ४. गा० १६३५. ५. १६४२. ६. गा० १६४९. ७. गा० १६५९ ८. गा० १६६५. ९. गा० १६६७.
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