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'पञ्चकल्प-महाभाष्य
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क्षेत्रकल्प का स्वरूप बताते हुए आचार्य ने अर्धषट्विंशति ( अद्धछब्बोस) अर्थात् साढ़े पचीस देशों को आर्यक्षेत्र बताया है जिसमें साधुओं को विचरना चाहिए । इन देशों के साथ ही इनकी राजधानियों के नाम भी दिये हैं। यहाँ एतद्विषयक भाष्य की छ: गाथाएं उद्धृत की जाती है जिनसे आर्यक्षेत्रीय देशों और उनको राजधानियों के नामों का ठीक-ठीक पता लग सकेगा:
रायगिह मगह चंपा, अंगा तह तामलित्ति वंगा य । कंचणपुरं कलिंगा, वाराणसि चेव कासी य ॥९६९।। साए य कोसला गयपुरं च कुरु सोरियं कुसट्ठा य । कंपिल्लं पंचाला, अहिछत्ता जंगला चेव ।।९७०॥ बारवती य सुरट्ठा, महिल विदेहा य वच्छ कोसंबी। णंदिपुरं संदिभा, भद्दिलपुरमेव वलया य ॥९७१।। वयराडवच्छ वरणा, अच्छा तह मत्तियावति दसण्णा । सोत्तियमती य चेती, वीतिभयं सिंध सोवीरा ॥९७२॥ महुरा य सुरसेणा, पावा भंगी य मासपुरिवट्टा । सावत्थी य कुणाला, कोडीवरिसं च लाढा य ॥९७३॥ सेयवियाऽविय णगरी केततिअद्धं च आरियं भणितं । जत्थुप्पत्ति जिणाणं चक्कोणं रामकिण्हाणं ॥९७४॥ आर्य जनपद और उनको मुख्य नगरियों के नाम ये हैं :
राजधानी १-मगध
राजगृह २-अंग
चम्पा ३-वंग
ताम्रलिप्ति ४-कलिंग
कांचनपुर ५-काशी
वाराणसी ६-कोशल
साकेत
गजपुर ८-कुशावर्त
सौरिक ९-पांचाल
काम्पिल्य १०-जांगल
अहिच्छत्रा ११-सौराष्ट्र
द्वारवती १२-विदेह
मिथिला १३-वत्स
कौशाम्बी, १४-सांडिल्य
नन्दिपुर
देश
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