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देश
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जैन साहित्य का बृहद् इतिहासा
राजधानी १५-मलय
भद्दिलपुर १६-मत्स्य
वैराटपुर १७-वरण
अच्छापुरी १८-दशार्ण
मृत्तिकावती १९-चेदि
शौक्तिकावती २०-सिंधु सौवीर ....
वीतिभय २१-शूरसेन
मथुरा २२-भंगि
पापा २३-वट्ट
मासपुरी २४-कुणाल
श्रावस्ती २५-लाट
कोटिवर्ष २५.-३केकया ..." .... .... .... श्वेताम्बिका
क्षेत्रकल्प के बाद कालकल्प का वर्णन करते हुए आचार्य ने निम्न विषयों का व्याख्यान किया है : मासकल्प, पर्युषणाकल्प, वृद्धवासकल्प, पर्यायकल्प, उत्सवर्ग, प्रतिक्रमण, कृतिकर्म, प्रतिलेखन, स्वाध्याय, ध्यान, भिक्षा, भक्त, विकार निष्क्रमण और प्रवेश ।' . भावकल्प के वर्णन में दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, संयम, समिति, गुप्ति आदि का विवेचन किया गया है । यहाँ तक प्रथम कल्प के अन्तर्गत छः प्रकार के कल्पों का अधिकार है। इसके बाद द्वितीय कल्प के सात भेदों का व्याख्यान प्रारंभ होता है।
सात प्रकार के कल्प में निम्न कल्पों का समावेश किया गया है : स्थितकल्प, अस्थितकल्प, जिनकल्प, स्थविरकल्प, लिंगकल्प, उपधिकल्प और संभोगकल्प । भाष्यकार ने इनका विस्तार से वर्णन किया है।
तृतीय कल्प के अन्तर्गत दस प्रकार के कल्पों का वर्णन किया गया है : कल्प, प्रकल्प, विकल्प, संकल्प उपकल्प, अनुकल्प, उत्कल्प अकल्प, दुष्कल्प और सुकल्प। पिण्डैषणा, भावना, भिक्षुप्रतिमा आदि यतिगुणों की वृद्धि करना कल्प है । उत्सारकल्प, लोकानुयोग, प्रथमानुयोग, संग्रहणी, संभोग, शृंगनादित आदि प्रकल्प हैं ।" अतिरेक, परिकर्म, भंडोत्पादना आदि विकल्प हैं : अतिरेगं परिकम्मण १. गा०१०२४-११३५. २. गा० ११३६-१२६७. ३. गा० १२६८ ४. गा० १५१४. ___ उस्सारकप्प लोगाणुओग पढमाणुओग संगहणी।
संभोग सिंगणाइय एवमादी पकप्पो उ ॥ १५३२ ॥
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