________________
आवश्यकचूणि
२७७ देवियों के रूप-लावण्य, स्वभाव-चापल्य, शृंगार-सौन्दर्य आदि का सरस एवं सफल 'चित्रण किया है। इसी प्रकार भगवान् के देह-वर्णन में भी आचार्य ने अपना साहित्य-कौशल दिखाया है।
क्षेत्र, काल आदि शेष द्वारों का व्याख्यान करते हुए चूर्णिकार ने नयाधिकार के अन्तर्गत वज्रस्वामी का जीवन-वृत्त प्रस्तुत किया है और यह बताया है कि आर्य वज्र के बाद होने वाले आर्य रक्षित ने कालिक का अनुयोग पृथक् कर दिया । इस प्रसंग पर आर्य रक्षित का जीवन-चरित्र भी दे दिया गया है । आर्य रक्षित के मातुल गोष्ठामाहिल का वृत्त देते हुए यह बताया गया है कि वह भगवान महावीर के शासन में सप्तम निह्नव के रूप में प्रसिद्ध हुआ। जमालि, तिष्यगुप्त, आषाढ़, अश्वमित्र, गंगसूरि और षडुलूक- ये छः निह्वव गोष्ठामाहिल के पूर्व हो चुके थे । इन सातों निह्लवों के वर्णन में चूर्णिकार ने नियुक्तिकार का अनुसरण किया है । साथ ही भाष्यकार का अनुसरण करते हुए चूर्णिकार ने अष्टम निह्वव के रूप में बोटिक-दिगम्बर का वर्णन किया है और कथानक के रूप में भाष्य की गाथा उद्धृत की है।'
इसके बाद आचार्य ने सामायिकसम्बन्धी अन्य आवश्यक बातों का विचार किया है, जैसे सामायिक के द्रव्य-पर्याय, नयदृष्टि से सामायिक, सामायिक के भेद, सामायिक का स्वामी, सामायिक-प्राप्ति का क्षेत्र, काल, दिशा आदि, सामायिक की प्राप्ति करने वाला, सामायिक की प्राप्ति के हेतु, एतद्विषयक आनन्द, कामदेव आदि के दृष्टान्त, अनुकम्पा आदि हेतु और मेंठ, इन्द्रनाग, कृतपुण्य, पुण्यशाल, शिवराजर्षि, गंगदत्त, दशार्णभद्र, इलापुत्र आदि के उदाहरण, सामायिक की स्थिति, सामायिकवालों की संख्या, सामायिक का अन्तर, सामायिक का आकर्ष, समभाव के लिए दमदन्त का दृष्टान्त, समता के लिए मेतार्य का उदाहरण, समास के लिए चिलातिपुत्र का दृष्टान्त, संक्षेप और अनवद्य के लिए तपस्वी और धर्मरुचि के उदाहरण, प्रत्याख्यान के लिए तेतलीपुत्र का दृष्टान्त । यहां तक उपोद्घातनियुक्ति की चूणि का अधिकार है।
सूत्रस्पर्शिकनियुक्ति की चूणि में निम्न विषयों का प्रतिपादन किया गया है : नमस्कार की उत्पत्ति, निक्षेपादि, राग के निक्षेप, स्नेहराग के लिए अरहन्नक का दृष्टान्त, द्वेष के निक्षेप और धर्मरुचि का दृष्टान्त, कषाय के निक्षेप और जमदग्न्यादि के उदाहरण, अर्हन्नमस्कार का फल, सिद्धनमस्कार और कर्म सिद्धादि, औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा और पारिणामिकी बुद्धि, कर्मक्षय और समुद्घात,
१. वही, पृ० ४२७, (निह्नववाद के लिए देखिए-विशेषावश्यकभाष्य, गा० २३०६-२६०९.)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org