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पञ्चकल्प-महाभाष्य
२५७ द्रव्य और भावपूर्वक विचार करना चाहिए। इसके बाद कल्प्य और अकल्प्य . वस्तुओं का विचार किया गया है ।
कल्पियों अर्थात् साधुओं की ज्ञान, दर्शन और चारित्ररूप त्रिविध सम्पदा का वर्णन करते हुए भाष्यकार ने पांच प्रकार के चारित्र का स्वरूप बताया है : सामायिक, छेदोपस्थापन, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मराग-सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात । इसी प्रकार चारित्र के क्षायिक, क्षायोपशमिक और औपशमिक-इन तीन भेदों का भी वर्णन किया गया है । ज्ञान दो प्रकार का होता है : क्षायिक और क्षायोपशमिक । केवलज्ञान क्षायिक है और शेष ज्ञान क्षायोपशमिक है । दर्शन तीन प्रकार का है : क्षायिक, क्षायोपशमिक और औपशमिक । चारित्र का पालन कौन करता है ? निग्रन्थ और संयत । निर्ग्रन्थ और संयत के पांच-पांच भेद होते हैं:
कस्सेतं चारित्तं णियंठ तह संजयाण ते कतिहा।
पंच णियंठा पंचेव संजया होंतिम कमसो ॥८३|| पांच प्रकार के निर्ग्रन्थ ये हैं : पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक। संयत के सामायिक आदि उपयुक्त पाँच भेद हैं । इन दस प्रकार के श्रमणों के प्रस्तुत भाष्य में और भी अनेक भेद-प्रभेद किये गए हैं।
'कल्प' शब्द का प्रयोग किन-किन अर्थों में किया गया है. इसका विचार करते हुए कहा गया है कि 'कल्प' शब्द निम्न अर्थों में प्रयुक्त हुआ है : सामर्थ्य , वर्णना, काल, छेदन, करण, औपम्य और अधिवास :
सामत्थे वण्णणा काले छेयणे करणे तहा।
ओवम्मे अहिवासे य कप्पसद्दो वियाहिओ ॥१५४|| इन सब का भेदपुरःसर विस्तृत विवेचन नवम पूर्व में किया गया है । प्रस्तुत भाष्य में केवल पञ्चकल्प-पांच प्रकार के कल्प का संक्षिप्त वर्णन है । जैसा कि स्वयं भाष्यकार लिखते हैं :
सो पुण पंचविकप्पो, कप्पो इह वण्णिओ समासेणं । वित्यरतो पुव्वगतो, तस्स इमे होंति भेदा तु ॥१७४॥ पाँच प्रकार के कल्प के क्रमशः छः, सात, दस, बीस और बयालीस भेद है : छव्विह सत्तविहे य, दसविह वीसतिविहे य बायाले । छः प्रकार के कल्प का छः प्रकार से निक्षेप करना चाहिए। वह छः प्रकार का निक्षेप है : नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ।३ द्रव्यकल्प तीन प्रकार का है : जीव, अजीव और मिश्र । जीवकल्प के पुनः तीन भेद हैं : द्विपद, चतुष्पद और अपद ।
१. गा० ५९.
२. गा० १७५.
३. गा० १८०.
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