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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भी ग्रहण का निषेध है ), पुरःकर्मसम्बन्धी प्रायश्चित्त, पुरःकर्मविषयक अविधिनिषेध और विधिनिषेध, सात प्रकार के अविधिनिषेध, आठ प्रकार के विधिनिषेध, पुरःकर्मविषयक ब्रह्महत्या का दृष्टान्त ।
९. ग्लानद्वार-ग्लान-रुग्ण साधु के समाचार मिलते ही उसका पता लगाने के लिए जाना चाहिए, वहाँ उसकी सेवा करने वाला कोई है कि नहींइसकी जाँच करनी चाहिए, जाँच न करने वाले के लिए प्रायश्चित्त, ग्लान साधु की श्रद्धा से सेवा करने वाले के लिए सेवा के प्रकार, ग्लान साधु की सेवा के लिए किसी की विनती या आज्ञा की अपेक्षा रखने वाले के लिए प्रायश्चित्त और तद्विषयक महद्धिक राजा का उदाहरण, ग्लान की सेवा करने में अशक्ति का प्रदर्शन करने वाले को शिक्षा, ग्लान साधु की सेवा के लिए जाने में दुःख का अनुभव करने वाले के लिए प्रायश्चित्त, उदगम आदि दोषों का बहाना करने वाले के लिए प्रायश्चित्त, ग्लान साधु की सेवा के बहाने से गृहस्थों के यहाँ से उत्कृष्ट पदार्थ, वस्त्र, पात्र आदि लाने वाले तथा क्षेत्रातिक्रान्त, कालातिक्रान्त आदि दोषों का सेवन करने वाले लोभी साधु को लगने वाले दोष और उनका प्रायश्चित्त, ग्लान साधु के लिए पथ्यापथ्य किस प्रकार लाना चाहिए, कहाँ से लाना चाहिए, कहाँ रखना चाहिए, उसको प्राप्ति के लिए गवेषणा किस प्रकार करनी चाहिए, ग्लान साधु के विशोषणसाध्य रोग के लिए उपवास की चिकित्सा, आठ प्रकार के वैद्य (१. संविग्न, २. असंविग्न, ३. लिंगी, ४. श्रावक, ५. संज्ञी, ६. अनभिगृहीत असंज्ञी ( मिथ्या-दृष्टि ), ७. अभिगृहीत असंज्ञो, ८. परतीथिक ), इनके क्रमभंग से लगने वाले दोष और उनका प्रायश्चित्त, वैद्य के पास जाने की विधि, वैद्य के पास ग्लान साधु को ले जाना या ग्लान साधु के पास वैद्य को लाना, वैद्य के पास कैसा साधु जाए, कितने साधु जाएँ, उनके वस्त्र आदि कैसे हों, जाते समय कैसे शकुन देखे जाएँ, वैद्य के पास जाने वाले साधु को किस काम में व्यस्त होने पर वैद्य से रोगी साधु के विषय में बातचीत करनी चाहिए, किस काम में व्यस्त होने पर बातचीत नहीं करनी चाहिए, वैद्य के घर आने के लिए श्रावकों को संकेत, वैद्य के पास जाकर रुग्ण साधु के स्वास्थ्य के समाचार कहने का क्रम, ग्लान साधु के लिए वैद्य का संकेत, वैद्य द्वारा बताये गए पथ्यापथ्य लभ्य हैं कि नहीं इसका विचार और लभ्य न होने पर वैद्य से प्रश्न, ग्लान साधु के लिए वैद्य का उपाश्रय में आना, उपाश्रय में आये हुए वैद्य के साथ व्यवहार करने की विधि, वैद्य के उपाश्रय में आने पर आचार्य आदि के उठने, वैद्य को आसन देने और रोगी को दिखाने की विधि, अविधि से उठने आदि में दोष और उनका प्रायश्चित्त, औषध आदि के प्रबंध के विषय में भद्रक वैद्य का प्रश्न, धर्मभावनारहित वैद्य के लिए भोजनादि तथा औषधादि के मूल्य की व्यवस्था,
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