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आवश्यकनियुक्ति करते रहे । अन्त में उन्हें जृम्भिकाग्राम के बाहर ऋजुवालुका नदी के किनारे वैयावृत्य चैत्य के पास में श्यामाक गृहपति के क्षेत्र में शाल वृक्ष के नीचे षष्ठतप के दिन उत्कुटुकावस्था में केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।'
केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद भगवान् मध्यमा पापा के महसेन उद्यान में पहुँचे। वहाँ पर द्वितीय समवसरण हुआ और उन्हें धर्मवरचक्रवर्तित्व की प्राप्ति हुई । इसी स्थान पर सोमिलार्य नामक ब्राह्मण की दीक्षा के अवसर पर ( यज्ञ के समय ) विशाल जनसमूह एकत्र हुआ था। यज्ञपाट के उत्तर में एकान्त में देवदानवेन्द्र भगवान् महावीर का महिमा-गान कर रहे थे। दिव्यध्वनि से चारों दिशाएँ गूंज रही थीं । समवसरण की महिमा का पार न था। दिव्यध्वनि सुनकर यज्ञवाटिका में बैठे हुए लोगों को बहुत आनन्द का अनुभव हो रहा था । वे सोच रहे थे कि हमारे यज्ञ से आकर्षित होकर देव दौड़े आ रहे हैं। इसी यज्ञवाटिका में भगवान् महावीर के भावी गणधर भी आये हुए थे जिनकी संख्या ग्यारह थी। उनके नाम ये हैं : १. इन्द्रभूति, २. अग्निभूति, ३. वायुभूति, ४. व्यक्त ५. सुधर्मा, ६. मंडिक, ७. मौर्यपुत्र, ८. अकंपित, ९. अचलभ्राता, १०. मेतार्य, ११. प्रभास ।' उनके मन में विविध शंकाएँ थीं जिनका भगवान् महावीर ने संतोषप्रद समाधान किया । अन्त में उन्होंने भगवान् से दीक्षा ग्रहण की और उनके प्रमुख शिष्य-गणधर हुए । उनके मन में क्रमशः निम्नलिखित शंकाएँ थीं: १. जीव का अस्तित्व, २. कर्म का अस्तित्व, ३. जीव और शरीर का अभेद, ४. भूतों का अस्तित्व, ५. इहभव-परभवसादृश्य, ६. बंध-मोक्ष, ७. देवों का अस्तित्व, ८. नरक का अस्तित्व, ९. पुण्य-पाप, १०. परलोक की सत्ता, ११. निर्वाण सिद्धि । जब यज्ञवाटिका के लोगों को यह मालूम हआ कि देवतासमूह हमारे यज्ञ से आकर्षित होकर नहीं आ रहा है अपितु जिनेन्द्र भगवान् महावीर की महिमा से खिंच कर दौड़ा आ रहा है तब अभिमानी इन्द्रभूति अमर्ष के साथ भगवान् के पास पहुँचा । ज्योंही इन्द्र भूति भगवान् के समीप पहुँचा त्यों ही भगवान् ने उसे नाम लेकर सम्बोधित किया और उसके मन की शंका सामने रखी और उसका समाधान किया जिसे सुनकर इन्द्रभूति का संशय दूर हुआ और वह अपने ५०० शिष्यों के साथ भगवान् के पास दीक्षित हो गया। इसी प्रकार अन्य गणधरों ने भी क्रमशः भगवान् से दीक्षा ली। इन गणधरों के जन्म, गोत्र, मातापिता आदि की ओर भी आचार्य ने संकेत किया है ।६ क्षेत्र-कालादि द्वार :
निर्गमद्वार की चर्चा के प्रसंग से भगवान् ऋषभदेव और महावीर के जीवन१. गा० ५२७. २. गा०५४०-५९२. ३. गा० ५९४-५. ४. गा० ५९७. ५. गा० ५९९-६४२. ६. गा० ६४३-६६०.
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