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अन्य भाष्यकार :
इन दो भाष्यकारों के आदि की रचना की
भाष्यकार तो हुए ही दूसरे श्री संघदासगणि बृहद्भाष्य आदि के
आचार्य जिनभद्र और संवदासमणि को छोड़कर अन्य भाष्यकारों के नाम का पता अभी तक नहीं लग पाया है । यह तो निश्चित है कि अतिरिक्त अन्य भाष्यकार भी हुए है जिन्होंने व्यवहारभाष्य है। मुनि श्री पुण्यविजयजी के मतानुसार कम से कम चार हैं। उनका कथन हैं कि एक श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, क्षमाश्रमण, तीसरे व्यवहारभाष्य आदि के प्रणेता और चौथे रचयिता - इस प्रकार सामान्यतया चार आगमिक भाष्यकार हुए हैं । प्रथम दो भाष्यकारों के नाम तो हमें मालूम ही हैं । बृहत्कल्प - बृहद्भाष्य के प्रणेता, जिनका - नाम अभी तक अज्ञात है, बृहत्कल्पचूर्णिकार तथा बृहत्कल्पविशेषर्णिकार से भी पीछे हुए हैं । इसका कारण यह है कि बृहत्कल्पलघुभाष्य की १६६१ वीं गाथा - में प्रतिलेखना के समय का निरूपण किया गया है । उसका व्याख्यान करते हुए चूर्णिकार और विशेषचूर्णिकार ने जिन आदेशांतरों का अर्थात् प्रतिलेखना के समय से संबंध रखने वाली विविध मान्यताओं का उल्लेख किया है उनसे भी और अधिक नई-नई मान्यताओं का संग्रह बृहत्कल्प - बृहद्भाष्यकार ने उपयुक्त गाथा • से सम्बन्धित महाभाष्य में किया है जो याकिनोमहत्तरासून आचार्य श्री हरिभद्रसूरिविरचित पंचवस्तुकप्रकरण की स्वोपज्ञ वृत्ति में उपलब्ध है । इससे यह - स्पष्ट प्रतीत होता है कि बृहत्कल्प - बृहद्भाष्य के प्रणेता बृहत्कल्पचूर्णि तथा विशेषचूर्णि के प्रणेताओं से पीछे हुए हैं । ये आचार्य हरिभद्रसूरि के कुछ पूर्ववर्ती अथवा - समकालीन हैं । अब रही बात व्यवहारभाष्य के प्रणेता कौन हैं और वे कब हुए हैं ? इतना होते हुए भी यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि व्यवहारभाष्यकार जिनभद्र के भी पूर्ववर्ती हैं ।" इसका प्रमाण यह है कि आचार्य जिनभद्र ने अपने विशेषणवती ग्रंथ में व्यवहार के नाम के साथ जिस विषय का उल्लेख किया है वह व्यवहारसूत्र के छठें उद्देशक के भाष्य में उपलब्ध होता है । इससे
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
१.
नियुक्ति-लघुभाष्य-वृत्त्युपेत बृहत्कल्पसूत्र ( षष्ठ भाग) : प्रस्तावना,
पृ० २१-२२
२. सोहो सुदाढनागो, आसग्गीवो य होइ अण्णसि । सिंहो मिगद्धओ ति य, होइ वसुदेवचरियम्मि ॥ सीहो चेव सुदाढो, जं रायगिम्मि कविलबडुओ त्ति । सीसइ बवहारे गोयमोवसमिओ स णिक्खंत ॥
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विशेषणवतो, ३३-४,
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