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विशेषावश्यकभाष्य
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सामायिक है, अजीवादि नहीं। जीव सावध योग का प्रत्याख्यान करते समय सामायिक होता है । दूसरे शब्दों में सामायिकभाव से परिणति होने के कारण जीव ही सामायिक है । अन्य सभी द्रव्य श्रद्धेय, ज्ञेय आदि क्रियारूप उपयोग के कारण उसके विषयभूत हैं।' द्रव्याथिक नय के अभिप्राय से सामायिक द्रव्य है तथा पर्यायाथिक नय की दृष्टि से सामायिक गुण है। यह तेरहवें कि द्वार की व्याख्या
कतिविध द्वार :
चौदहवे द्वार कतिविध को व्याख्या करते हुए कहा गया है कि सामायिक तीन प्रकार की है : सम्यक्त्व, श्रुत तथा चारित्र । चारित्र दो प्रकार का है : आगारिक तथा अनागारिक । श्रुत अर्थात् अध्ययन तीन प्रकार का है : सूत्रविषयक अर्थविषयक और उभय विषयक । सम्यक्त्व निसर्गज तथा अधिगमज भेद से दो प्रकार का है। इन दोनों में से प्रत्येक के औपशमिक, सास्वादन, क्षायोपशमिक, वेदक और क्षायिक-ये पाँच भेद होते हैं । इस प्रकार सम्यक्त्व दस प्रकार का भी है । अथवा कारक, रोचक और दीपक भेद से सम्यक्त्व के क्षायिक, क्षायोपशमिक तथा औपशमिक-ये तीन भेद भी होते हैं। इसी प्रकार श्रुत और चारित्र के भी विविध भेद हो सकते हैं । कस्य द्वार :
जिसको आत्मा संयम, नियम तथा तप में स्थित है उसके पास सामायिक होता है। जो अस और स्थावर सब प्राणियों के प्रति समभाव-माध्यस्थ्यभाव रखता है उसके पास सामायिक होतो है । जो न राग में प्रवृत्त होता है न द्वेष में, किन्तु दोनों के मध्य में रहता है वह मध्यस्थ है और शेष सब अमध्यस्थ हैं।" कुत्र द्वार :
इस द्वार का निम्न उपद्वारों की दृष्टि से विचार किया गया है : क्षेत्र, दिक, काल, गति, भव्य, संजी, उच्छ्वास, दृष्टि, आहार, पर्याप्त, सुप्त, जन्म, स्थिति, वेद, संज्ञा, कषाय, आयुष, ज्ञान, योग, उपयोग, शरीर, संस्थान, संहनन, मान, लेश्यापरिणाम, वेदना, समुद्घातकर्म, निर्वेष्टन, उद्वर्तन, आस्रवकरण, अलंकार, शयन, आसन, स्थान, चंक्रमण । केषु द्वार :
सामायिक किन द्रव्यों और पर्यायों में होती है ? सम्यक्त्व सर्वद्रव्य-पर्यायगत है। श्रुत और चारित्र में द्रव्य तो सब होते हैं। किन्तु पर्याय सब नहीं होते ।
१. गा० २६३३-२६४०. ४. गा० ३६७२-२६८०.
२. गा० २६५८. ३. गा० २६७३-७. ५. गा. २६९१. ६. गा० २६९२-२७५०.
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