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बृहत्कल्प-लघुभाष्य
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स्थविरकल्पिक :
स्थविरकल्पिकों के लिए प्रव्रज्या, शिक्षा, अर्थग्रहण, अनियतवास और निष्पत्ति का वर्णन जिनकल्पिकों के ही समान समझ लेना चाहिए। विहार के लिए निम्न बातों का विचार किया गया है : विहार का समय और मर्यादा, विहार करने के लिए गच्छ के निवास और निर्वाहयोग्य क्षेत्र की जांच करने की विधि, क्षेत्र की प्रतिलेखना के लिए क्षेत्रप्रत्युपेक्षकों को भेजने के पहले उसके लिए योग्य सम्मति और सलाह लेने के लिए सम्पूर्ण गच्छ को बुलाने की विधि, उत्सर्ग और अपवाद की दृष्टि से योग्य-अयोग्य क्षेत्रप्रत्युपेक्षक, गच्छ के रहने योग्य क्षेत्र की प्रतिलेखना के लिए कितने जनों को जाना चाहिए और किस प्रकार जाना चाहिए, क्षेत्र की प्रतिलेखना के लिए जाने की विधि और क्षेत्र में परीक्षा करने योग्य बातें, क्षेत्र की प्रतिलेखना के लिए जाने वाले क्षेत्रप्रत्युपेक्षकों द्वारा विहार के मार्ग, मार्ग में स्थण्डिलभूमि, पानी, विश्रामस्थान, भिक्षा, वसति, चोर आदि के उपद्रव आदि बातों की जांच, प्रतिलेखना करने योग्य क्षेत्र में प्रवेश करने की विधि, भिक्षाचर्या द्वारा उस क्षेत्र के लोगों की मनोवृत्ति की परीक्षा, भिक्षा, औषध आदि की सुलभता-दुर्लभता, महास्थण्डिल की प्रतिलेखना और उसके गुण-दोष, गच्छवासी यथालंदिकों के लिए क्षेत्र की परीक्षा, परीक्षित-प्रतिलिखित क्षेत्र की अनुज्ञा की विधि, क्षेत्रप्रत्युपेक्षकों द्वारा आचार्यादि के समक्ष क्षेत्र के गुण-दोष निवेदन करने तथा जाने योग्य क्षेत्र का निर्णय करने की विधि, विहार करने के पूर्व जिसकी वसति में रहे हों उसे पूछने की विधि, अविधि से पूछने पर लगने वाले दोष और उनका प्रायश्चित्त, विहार करने के पूर्व वसति के स्वामी को विधिपूर्वक उपदेश देते हुए विहार के समय का सूचन, विहार करते समय शुभ दिवस और शुभ शकुन देखने के कारण, शुभ शकुन और अशुभ शकुन, विहार करते समय आचार्य द्वारा वसति के स्वामी को उपदेश, विहार के समय आचार्य, बालसाधु आदि के सामान को किसे किस प्रकार उठाना चाहिए, अननुज्ञात क्षेत्र में निवास करने से लगने वाले दोष और उनका प्रायश्चित्त, प्रतिलिखित क्षेत्र में प्रवेश और शुभाशुभ शकुनदर्शन, आचार्य द्वारा वसति में प्रवेश करने की विधि, वसति में प्रविष्ट होने के बाद गच्छवासियों की मर्यादाएँ और स्थापनाकुलों की व्यवस्था, वसति में प्रवेश करने के बाद झोली-पात्र लिये हुए अमुक साधुओं को साथ लेकर आचार्य आदि का जिनचैत्यवंदना के लिए निकलना, झोली-पात्र साथ रखने के कारण, जिनचैत्यों के वन्दन के लिए जाते हुए मार्ग में गृहजिनमंदिरों के दर्शनार्थ जाना और दानश्रद्धालु, धर्मश्रद्धालु, ईर्ष्यालु, धर्मपराङ्मुख आदि श्राद्धकुलों की पहचान करना, स्थापनाकुल आदि की व्यवस्था, उसके कारण और वीरशुनिका का उदाहरण, चार प्रकार के प्राघूर्णक साधु, स्थापना
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