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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास विषयों का समावेश कर लिया गया है। इस चर्चा में भाग लेनेवाले पण्डित जोकि बाद में भगवान महावीर के प्रमुख शिष्य-गणधर के नाम से प्रसिद्ध हुए उनके नाम इस प्रकार है : १. इन्द्र भूति. २. अग्निभूति, ३.वायुभूति, ४. व्यक्त, ५. सुधर्मा, ६. मंडिक, ७. मौर्यपुत्र, ८. अकंपित, ९. अचलभ्राता, १०. मेतार्य, ११. प्रभास । इनके साथ जिन विषयों की चर्चा हुई वे क्रमशः इस प्रकार हैं : १. आत्मा का अस्तित्व, २. कर्म का अस्तित्व, ३. आत्मा और शरीर का भेद, ४. शून्यवादनिरास, ५. इहलोक और परलोक का वैचित्र्य, ६. बंध और मोक्ष, ७. देवों का अस्तित्व, ८. नरकों का अस्तित्व, ९. पुण्य और पाप, १०. परलोक का अस्तित्व, ११. निर्वाण का अस्तित्व । आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व : ___ सर्वज्ञत्व की प्राप्ति के बाद भगवान् महावीर एक समय महसेन वन में विराजित थे। जनसमूह श्रद्धावश उनके दर्शन के लिए जा रहा था। यज्ञवाटिका में स्थित ब्राह्मण पण्डितों के मन में यह दृश्य देखकर जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि ऐसे महापुरुष से अवश्य मिलना चाहिए जिसके दर्शन के लिए इतना बड़ा जनसमूह उमड़ रहा है। उन सभी के मन में वेदवाक्यों को लेकर नाना प्रकार की शंकाए थीं। सर्वप्रथम इन्द्रभूति ( गौतम ) भगवान् महावीर के पास जाने के लिए तैयार हुए। जैसे ही वे अपनी शिष्य-मंडली सहित भगवान् के पास पहुँचे, भगवान् ने उनके मन में स्थित सन्देह की ओर संकेत करते हुए कहा-आत्मा के अस्तित्व के विषय में तुम्हारे मन में इस प्रकार का संशय है कि यदि जीव (आत्मा) का अस्तित्व है तो वह घटादि पदार्थों की भाँति प्रत्यक्ष दिखाई देना १. पं० श्री दलसुख मालवणियाकृत 'गणघरवाद' में आचार्य जिनभद्रकृत
गणधरवाद का संवादात्मक गुजराती अनुवाद, टिप्पण, विस्तृत तुलनात्मक प्रस्तावना आदि हैं । गुजरात विधासभा, भद्र, अहमदाबाद की ओर से सन् १९५२ में इसका प्रकाशन हुआ है । श्री पृथ्वीराज जैन, एम०ए०, शास्त्री ने इसका हिन्दी में भी अनुवाद किया है जो अभी तक अप्रकाशित है । प्रस्तुत परिचय में इस ग्रंथ का उपयोग करने के लिए लेखक व अनुवादक दोनों का आभारी हूँ।
___ गणधरवाद के अंग्रेजी अनुवाद तथा विवेचन के लिए देखिए-श्रमण भगवान् महावोर, भा०. ३ : सम्पा०--मुनि रत्नप्रभविजय; अनु०-प्रो० धीरुभाई पी० ठाकर; प्रका०-श्री जैनग्रन्थ प्रकाशक सभा, पांजरापोल, अहमदाबाद, सन् १९४२; श्री जैन सिद्धान्त सोसायटो, पांजरापोल, अहमदाबाद, सन् १९५० तथा डा. ई. ए. सोलोमन का अंग्रेजी अनुवाद : प्रका० गुजरात विद्यासभा, अहमदाबाद, सन् १९६६.
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