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विशेषावश्यकभाष्य
१५९ वायु और आकाश का अस्तित्व :
स्पर्शादि गुणों का कोई गुणी अवश्य होना चाहिए क्योंकि वे गुण हैं, जैसे रूप गुण का गुणी घट है । स्पर्शादि गुणों का जो गुणी है वह वायु है ।'
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु-इन सब का कोई आधार होना चाहिए क्योंकि ये सब मूर्त हैं । जो मूर्त होता है उसका आधार अवश्य होता है, जैसे कि पानी का आधार घट है । पृथ्वी आदि का जो आधार है वही आकाश है।
इस प्रकार भगवान् महावीर व्यक्त की भूतविषयक शंका का समाधान करते हुए आगे कहते हैं कि जबतक शस्त्र से उपघात न हुआ हो तबतक ये भूत सचेतन हैं, शरीर के आधारभूत है, विविध प्रकार से जीवों के उपयोग में आते हैं। भूतों की सजीवता :
पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु सचेतन हैं क्योंकि उनमें जीव के लक्षण दिखाई देते हैं । आकाश अमूर्त है। वह केवल जीव का आधार ही बनता है । वह सजीव नहीं है। पृथ्वी सचेतन है क्योंकि उसमें जीव में दिखाई देनेवाले जन्म, जरा, जीवन, मरण, क्षतसंरोहण, आहार, दोहद, रोग, चिकित्सा आदि लक्षण पाये जाते हैं । स्पृष्टप्ररोदिका (लाजवन्ती) क्षुद्र जोव के समान स्पर्श से संकुचित हो जाती है । लता अपना आश्रय प्राप्त करने के लिए मनुष्य के समान वृक्ष की ओर बढ़ती हुई दिखाई देती है। शमी आदि में निद्रा, प्रबोध, संकोच आदि लक्षण माने जाते हैं। बकुल शब्द का, अशोक रूप का, कुरुबक गंध का, विरहक रस का, चंपक स्पर्श का उपभोग करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं । जल भी सचेतन है। भूमि खोदने से स्वाभाविक रूप से निकलने के कारण मेंढक के समान जल सजीव सिद्ध होता है । मत्स्य के समान स्वाभाविक रूप से व्योम से गिरने के कारण जल को सचेतन मानना चहिए ।६ वायु की सचेतनता का प्रमाण यह है : जैसे गाय किसी की प्रेरणा के बिना ही अनियमित रूप से तिर्यक् गमन करती है उसी प्रकार वायु भी है अतः वह सजीव है। अग्नि भी सजीव है क्योंकि जैसे मनुष्य में आहार आदि से वृद्धि और विकार दिखाई देते हैं वैसे ही अग्नि में भी काष्ठादि आहार से वृद्धि और विकार दिखाई देते हैं ।
३. गा० १७५१.
१. गाथा १७४९. ४. गा० १७५२. ६. ग० १७५७.
२. गा० १७५०. ५. गा० १७५४-५. ७. गा० १७५८.
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