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श्यकभाष्य
उद्देश :
उद्देश का अर्थ है सामान्य निर्देश । वह नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल समास, उद्देश और भाव भेद से आठ प्रकार का होता है । भाष्यकार ने इनका संक्षिप्त परिचय दिया है।' निर्देश:
वस्तु का विशेष उल्लेख निर्देश है। इसके भी मानादि आठ भेद होते हैं । इनका भी भाष्यकार ने विशेष परिचय दिया है तथा नय दृष्टि से सामायिक की त्रिलिंगता का विस्तार से विचार किया है ।। निर्गम:
निगम का अर्थ है प्रसूति अर्थात् उत्पत्ति । निगम छः प्रकार का है : नाम, (स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भाव । इन भेदों की चर्चा करते हुए कहा गया है कि जिस द्रव्य से सामायिक का निर्गम हुआ हैं वह द्रव्य यहाँ पर महावीर के रूप में है । जिस क्षेत्र में उसका निर्गम हुआ है वह महसेन वन है। उसका काल प्रथम पौरुषी-प्रमाणकाल है । भाव वक्ष्यमाण लक्षण भावपुरुष है । ये संक्षेप में सामायिक के निर्गमांग है । सामायिक के निर्गम के साथ स्वयं महावीर के निर्गम की चर्चा करते हुए भाष्यकार नियुक्तिकार के ही शब्दों में कहते हैं कि महावीर किस प्रकार मिथ्यात्वादि तम से निकले, किस प्रकार उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ तथा कैसे सामायिक की उत्पत्ति हुई-आदि बातें बताऊँगा। इतना कहने के बाद भाष्यकार एकदम गणधरवाद की व्याख्या प्रारम्भ कर देते हैं। टीकाकार मलधारी हेमचन्द्र उपर्युक्त बातों की ओर हमारा ध्यान खींचते हुए कहते हैं कि ये सब बातें सूत्रसिद्ध ही हैं । इनमें जो कुछ कठिन प्रतीत हो वह मूलावश्यकविवरण से जान लेना चाहिए । गणधरवाद :
भगवान् महावीर तथा ग्यारह प्रमुख ब्राह्मण-पण्डितों के बीच विभिन्न दार्शनिक विषयों पर जो चर्चा हुई तथा भगवान् के मन्तव्यों से प्रभावित होकर उन पण्डितों ने महावीर के संघ में सम्मिलित होना स्वीकार किया, इसकी भाष्यकार जिनभद्र ने अपने ग्रंथ में विस्तृत एवं तर्कयुक्त चर्चा की है इसी चर्चा का नाम गणधरवाद है। इस चर्चा में दार्शनिक जगत् के प्रायः समस्त
१. गा० १५८६-१४९६. ३. गा० १५२१-१५४६.
२. गा० १४९७-१५३०. ४. गा० १५४८.
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